बाढ़ का इंतजार नही, इंतजाम जरूरी है: प्रशान्त सिन्हा

बाढ़ का इंतजार नही, इंतजाम जरूरी है: प्रशान्त सिन्हा

बाढ़, एक प्राकृतिक आपदा जिसे हम हमेशा से जानते हैं, ने इस वर्ष भी अपना विकराल रूप दिखाया है। हाल ही में, असम, बिहार, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भयानक बाढ़ ने हजारों लोगों को बेघर कर दिया है, सैकड़ों की जान ली है और लाखों की संपत्ति को नष्ट कर दिया है।

पूर्वोत्तर की बात करें तो असम में जहां लगभग 23 लाख लोग प्रभावित हैं वही मणिपुर व नागालैंड भी इसकी चपेट में है। जबकि सिक्किम, अरुणाचल, त्रिपुरा और मिजोरम में भी भारी बारिश हो रही है। पूरे उत्तर भारत में भी भारी बारिश हो रही है।

आलम यह है कि बिहार में भारी बारिश के कारण केवल 18 दिनों में बिहार में 12 पुल धराशाई हो गए हैं। बिहार, यूपी और असम में हर वर्ष बाढ़ आता है। हर वर्ष रोकने के लिए इंतजाम किए जाते रहे हैं लेकीन शायद नाकाफी है।

1980 में राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने अनुमान लगाया था कि 21वीं सदी के शुरुआती दशक तक चार करोड़ हेक्टेयर भूमि बाढ़ के चपेट में होगी। इसे देखते हुए बहुद्देशीय बांध और 35000 किमी तटबंध बनाए गए। लेकिन कम होने के बजाय यह और बढ़ता ही जा रहा है। पर क्या हम हर बार की तरह सिर्फ इसका इंतजार करेंगे या इस बार कुछ ठोस इंतजाम करेंगे?

बाढ़ के कारणों को समझना जरूरी है। विशेषज्ञों के अनुसार, बाढ़ का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन, अनियमित वर्षा और नदियों के किनारे अवैध निर्माण है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2000 से 2019 के बीच बाढ़ की घटनाएं 134% बढ़ी हैं। इससे साफ है कि हम सिर्फ प्राकृति के गर्जनाओं का सामना नहीं कर रहे, बल्कि अपने ही गलतियों का भी खामियाजा भुगत रहे हैं।

पिछले कुछ वर्षों में, सरकारों ने बाढ़ से निपटने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। परंतु इनमें से अधिकतर योजनाएं कागजों तक ही सीमित रह गई हैं। नदियों की सफाई, तटबंधों का निर्माण, और जलभराव वाले क्षेत्रों की निगरानी जैसे कार्यों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। परिणामस्वरूप, हर साल बाढ़ के चलते जान-माल का भारी नुकसान होता है। बाढ़ का एक कारण अंतराष्ट्रीय परिस्थिति भी है।

नेपाल के कारण बिहार और चीन के कारण असम में बाढ़ आता है। बिहार की अलग समस्या है। उत्तर में नेपाल से तो दक्षिण में झारखंड से और यूपी के ढलान से आए पानी से बिहार में बाढ़ आता है।

नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) के अनुसार, 2015 से 2020 के बीच भारत में बाढ़ के कारण लगभग 1700 लोगों की मौत हुई और लगभग 65 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को नुकसान पहुंचा। यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि हमारी तैयारियों में कमी है। बाढ़ से बचाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण कदम है नदियों के किनारे अवैध निर्माण को रोकना। इसके अलावा, जलभराव वाले क्षेत्रों की नियमित सफाई और नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखना भी जरूरी है।अधिकारियों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

वैज्ञानिकों और जलवायु विशेषज्ञों की सलाह पर ध्यान देना और उन्हें योजनाओं में शामिल करना अति आवश्यक है। साथ ही, बाढ़ पूर्वानुमान तंत्र को भी सुधारने की जरूरत है ताकि लोगों को समय रहते चेतावनी मिल सके। इसके अलावा, लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। कचरा फेंकने और नदियों को प्रदूषित करने से बचना होगा। हमें समझना होगा कि नदियों का संरक्षण ही हमारा संरक्षण है।

केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा। फंड की कमी का बहाना नहीं चलेगा। हाल ही में, एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में केंद्र सरकार ने बाढ़ नियंत्रण के लिए 3000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, परंतु इनमें से अधिकांश राशि का सही उपयोग नहीं हो पाया। इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की भी जरूरत है।

नेपाल, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों के साथ मिलकर जल संसाधन प्रबंधन पर काम करना चाहिए। इससे बाढ़ नियंत्रण में काफी मदद मिलेगी। बाढ़ के समय राहत कार्यों को तेजी से और प्रभावी ढंग से अंजाम देने के लिए स्थानीय प्रशासन को भी तैयार रहना चाहिए। रेस्क्यू टीमें, चिकित्सा सहायता और राहत सामग्री को पहले से ही तैयार रखना होगा ताकि जरूरत पड़ने पर तुरंत मदद पहुंचाई जा सके।

बाढ़ का इंतजार नहीं, इंतजाम जरूरी है। हमें बाढ़ से निपटने के लिए अपनी तैयारियों को मजबूत करना होगा। सिर्फ योजनाएं बनाना और कागजों पर काम करना काफी नहीं है। हमें धरातल पर उतरकर काम करना होगा।

तभी हम बाढ़ के प्रकोप से खुद को और अपनी आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रख पाएंगे। बाढ़ का सामना करना हमारे लिए एक चुनौती है, परंतु सही कदम उठाकर हम इस चुनौती को अवसर में बदल सकते हैं।

यह समय है जागरूक होने का, संगठित होने का, और मिलकर इस प्राकृतिक आपदा का सामना करने का। हमारा छोटा सा प्रयास भी बाढ़ से बड़ी राहत दिला सकता है।

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