कबीर अहमद
आप इसे शौक कहेंगे या नादानी. करतब कहें या बेवकूफी पर आज की युवा पीढ़ी मोटरबाइक को जिस रफ़्तार से चला रही है, उसे देख कर इतना जरूर कहा जा सकता है कि मोटर बाइक की रेस में युवा पीढ़ी अपनी जिंदगी के रेस में हारती नजर आ रही है.
आय दिन देश में बढ़ती दुर्घटनाएं और उन दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा युवाओं की संख्या होना कहीं ना कहीं चिंता का विषय है. दुर्घटनाओं में ज्यादातर ऐसे युवा बाईक सवार देखने को मिल रहे है जो अनियंत्रित और तेज रफ़्तार में बाइक चलाने के कारण जिंदगी से हाथ धो बैठ रहे है. आज की युवा पीढ़ी जिस कदर अपनी सुरक्षा को छोड़ रफ़्तार के शौक के पीछे भाग रहे हैं उसे देख कर लगता है कि इनको जिंदगी जोखिम में डालने में कुछ खास ही मजा आता है.
बिना हेलमेट के चलना और तेज़ रफ़्तार में चलना आज के दौर में फैशन सा हो गया है. कुछ युवा ऐसे भी है जो ऐसा ना करने पर औरों से अपने आप को पीछे मानते है. तेज़ रफ़्तार से बाईक चलना उनकी फितरत सी हो गयी है.
आधुनिकता के इस दौर में बाइक बनाने वाली कंपनीयां भी एक से बढ़कर एक बाइकें बाजार में उतार रही है. फ़िल्मी स्टंट को आज के युवा बड़ी आसानी से इन आकर्षक बाइकों से अंजाम देते है. लेकिन ऐसे युवक जितनी तेज़ रफ़्तार और बिना सुरक्षा के बाईक चलना पसंद कर रहे हैं उतना ही अगर अपनी सुरक्षा पर भी ध्यान दें तो शायद कई एक ज़िंदगियाँ बच सकती है और कई घर उजड़ने से बच सकते है.
आज के दौर के कुछ ही ऐसे युवा है जो अपने भविष्य की चिंता करते है. ‘दूर दृष्टि सदा सुखी’ और ‘कृप्या वाहन धीरे चलायें’ जैसे वाक्य आज की युवा पीढ़ी के शब्दकोश में ही नही है. कई युवाओं को अभिभावक की बातों को नज़र अंदाज़ करना उनकी ज़िन्दगी पर भारी पड़ा है.
एक कहावत है ‘अब पश्चात् होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत. समय रहते ही संभल जाना ज्यादा बेहतर है क्योंकि दिनभर का भूला शाम में घर वापस आ जाये तो उसे भूला नही कहते.