(आशुतोष श्रीवास्तव)
लोक कलाकार नवजागरण और भोजपुरी मिट्टी के सोंधी सुगंध के प्रतिक राय बहादुर भिखारी ठाकुर. जिन्होने न सिर्फ उत्तर बिहार मे वरण पूरे उत्तर भारत के समस्त भाषा-भाषी क्षेत्रों अपनी कालजयी रचनाओं के माध्यम से समाजिक रूढ़िया और विषमताओं के विरूद्ध लोक संस्कृति के विभिन्न माध्यमों से समाज में परिवर्तन का अद्भुत राग छेड़ा.
पूरा राष्ट्र आज इस भोजपुरी के शेक्सपीयर की जयन्ती मनाने की तैयारी कर रहा है. परन्तु इनके परिवार और घर के तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता है. फलस्वरूप आज भी इनके परिवार के लोग गुमनामी की जिन्दगी जी रहे है और किसी तरह अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं.
गांव की दशा देखकर पुरानी संस्कृति याद आ जाती है. जहां जाने का एकमात्र रास्ता नाव ही है. बुनियादी सुविधाओं का घोर आभाव में नरकीय जिन्दगी जीने को विवश है. भिखारी ठाकुर के गांव की आज तक गांव की तकदीर और तस्वीर नही बदली है. शायद सरकारी सुविधाओ से आज भी भिखारी ठाकुर का गाँव कोसो दूर है.
लोक कवि स्व० भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसम्बर 1887 ई० में सारण जिला के डोरीगंज थाना क्षेत्र के कुतुबपुर दियारा गांव में एक नाई परिवार में हुआ था. आज यह पुरा गांव पूरी तरह गांव के कटाव से ग्रसित है. भिखारी ठाकुर के मकान को देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी हालत कैसी है? आज यह मिट्टी का बना खपरौल मकान ठाकुर जी के परिवार के त्रासदी को खुद-बखुद बया कर रहा है. जब तक भिखारी ठाकुर जिन्दा थे उनके कमाई से उनका घर ठीक-ठाक चलता था. लेकिन आज उनके परिजन किसी तरह अपना गुजर-बसर करते है. यहां तक की भिखारी ठाकुर का लोकप्रिय लौन्डा नाच अब नौटंकी पार्टी सरकारी संरक्षण के आभाव में दब तोड़ रही है. सरकार भिखारी आश्रम के पास उनके मंच बनाने की घोषणा कई वर्ष पूर्व की थी लेकिन अब तक वह मंच तैयार नहीं हो सका. गांव में स्वास्थ्य केन्द्र, शिक्षा का आभाव लोगों को खूब सताता है. जयन्ती समारोहों पर पहले कुछ राजनेता आते भी थे, पर अब वों भी आना मुनासिब नहीं समझते है. कारण भी यह है कि इस गांव में आने का एकमात्र साधन नाव ही है. अब इस भोजपुरी के इस पूरोधा की जन्म स्थली गुलजार होगी और लोगों की बरसों पुरानी मांग जिला मुख्यालय को पुल से जोड़ने की पुरा होगी. जिससे यहां के लोगों को जिला मुख्यालय से जुड़कर जमाने के साथ चलने में मदद मिलेगी.
अब आपको कुछ ऐसे विशेषताएँ बताते है जिसके लिए आज भी भिठारी ठाकुर ने लोगो में अपने जिंदा होने के छाप छोड़ा है वही भोजपुरी ने अपने लोक संगीत की प्रचलित अधिसंख्य लय विद्याओं में गीतों की रचना की. जिसमें कजरी, चैता, विवाह गीत, भजन आदि प्रमुख है इतना ही नही उन्होने अपनी रचनाओ के माध्यम से समाज में मौजूद कुरीतियों पर जम कर प्रहार किया.
यू तो भिखारी ठाकुर ने कई रचनाये की, प्रसिद्धि पायी, उसमें, विदेशिया, भाई विरोध, विधवा, पुत्र वध, गंगा स्नान, बेटी वियोग, गबर धिचोर आदि प्रमुख है. अंग्रेजों द्वारा ‘‘राय साहब’’ की उपाधि से नवाजे गये थे.
आजादी के बाद से लेकर आजतक इस गांव के विकास के लिए किसी भी प्रतिनिधि ने कुछ किया नहीं और ना कोई पहल की है. जबकि आज भी गांव में दूध की नदिया बहती है, फल-सब्जियों का अच्छा उत्पादन है. लेकिन बाजार के आभाव में यहा के किसान विवश है.
ये लेखक के निजी विचार है.
आशुतोष श्रीवास्तव
लेखक टीवी जर्नलिस्ट है.
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