सीआरपीएफ में लेडी ‘कोबरा कमांडो’ को मिली स्वीकृति

सीआरपीएफ में लेडी ‘कोबरा कमांडो’ को मिली स्वीकृति

New Delhi: केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने अपनी प्रथम महिला वाहिनी ‘88’ के स्थापना दिवस पर अपने विशेष बल ‘कोबरा’ में महिला कर्मिकों की तैनाती को स्वीकृति प्रदान की है। सीआरपीएफ का यह कदम महिला सशक्तिकरण के प्रति अपने संकल्प को आगे बढ़ाते हुए नक्सल विरोधी अभियान को और मजबूती दी है।

महिला योद्धाओं का सशक्त एवं सुनहरा इतिहास

सीआरपीएफ के महानिदेशक डॉ. एपी माहेश्वरी ने शनिवार को कहा कि बल में महिला योद्धाओं का सशक्त एवं सुनहरा इतिहास है जिन्होंने न केवल भारत में बल्कि संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न शांति अभियानों में भाग लेकर विदेशी धरती पर अपना लोहा मनवाकर राष्ट्र को गौरवान्वित किया है। उन्होंने कहा कि जहां एक ओर महिलाओं का बल में होना बल में विविधता लाता है वहीं दूसरी ओर सशक्त नारी के द्वारा ही सशक्त परिवार की उत्पत्ति होती है जिससे सशक्त राष्ट्र बनता है।

34 महिला को 3 माह की कड़ी कोबरा प्री-इन्डक्शन ट्रेनिंग दी जाएगी

डॉ. माहेश्वरी के अनुसार प्रथम संपूर्ण महिला ब्रास बैंड गठित कर सांस्कृतिक क्षेत्र में भी उनकी भूमिका बढ़ाई जा रही है। सभी 06 महिला बटालियनों की 34 महिला कार्मिक आज ‘कोबरा’ में सम्मिलित हो रहीं हैं जिनको 03 माह की कड़ी कोबरा प्री-इन्डक्शन ट्रेनिंग दी जाएगी। इस प्रशिक्षण में इन्हें विशेष हथियारों को चलाने, सामरिक योजना बनाने, फील्ड़ क्राफ्ट्स, विस्फोटकों को जानने, जंगल में जीवित रहने की कला आदि सिखाई जाएगी जिससे इनकी शारीरिक क्षमता और सामरिक कौशल में वृद्धि होगी। इन महिला कार्मिकों का प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद इन्हें पुरुष कार्मिकों के साथ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात किया जाएगा। ब्रास बैंड में शामिल हो रही महिला कार्मिकों को संगीत वाद्ययंत्रों पर अपेक्षित कौशल प्राप्त करने के लिए एक प्रशिक्षण पाठ्यकम से गुजरना होगा। ज्ञात हो कि बल में पहले से ही महिला पाईप बैंड भी है।

महिला वाहिनी का गठन

सीआरपीएफ के प्रवक्ता एम दिनाकरन ने बताया कि 1986 में आज ही के दिन 88वीं महिला वाहिनी का गठन किया गया, जिसने आज राष्ट्रसेवा में सफल एवथ स्वर्णिम 34 वर्ष पूर्ण किए हैं। इसने देश के सभी भू-भागों में अपनी सेवाएं दी हैं। संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। प्रवक्ता के अनुसार सात बहादुर शेरनियों ने कर्तव्य की वेदी पर सर्वोच्च बलिदान देकर अपने आपको अमर कर लिया है। बटालियन की महिला योद्धओं ने वीरता के कई रिकार्ड बनाए हैं जिसके फलस्वरूप उन्हें अनेक वीरता पदकों के साथ शांतिकाल का सर्वोच्च वीरता पदक ‘अशोक चक्र’ भी प्रदान किया गया है।

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