रूसी एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम एस-400 इसी साल भारत को मिलेगा

रूसी एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम एस-400 इसी साल भारत को मिलेगा

– तीनों सशस्त्र बलों का एकीकरण होने के बाद भारत की युद्ध क्षमता बढ़ेगी
– चीनी वायु सेना पर भारत की लगातार पैनी निगरानी, हम पूरी तरह से तैयार
– पाकिस्तान और पीओके के हवाई क्षेत्रों से ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं

नई दिल्ली: वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी ने कहा है कि इसी साल के अंत तक रूसी एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम एस-400 को वायुसेना में शामिल कर लिया जाएगा। इससे 400 किलोमीटर की रेंज तक एक साथ 36 टारगेट को निशाना बनाया जा सकेगा। लगातार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे मिग-21 के बारे में उन्होंने कहा कि इन लड़ाकू विमानों को वायुसेना से रिटायर होने में अभी तीन-चार साल लगेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वायुसेना तीनों सशस्त्र बलों के एकीकरण के लिए उत्सुक है, क्योंकि तीनों सेनाओं की संयुक्त योजना और संचालन से भारत की युद्ध क्षमता बढ़ेगी।

राष्ट्र की सेवा में अपने 90वें वर्ष में प्रवेश कर रही वायु सेना के नवनियुक्त प्रमुख एयर चीफ मार्शल चौधरी ने मंगलवार को सालाना प्रेस कांफ्रेंस में भविष्य की योजनाओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पावरफुल मिसाइल सिस्टम एस-400 के आने से भारतीय वायुसेना को मजबूती मिलेगी। यह डिफेंस सिस्टम चीन के पास पहले से ही है। चीन ने भी रूस से ही इस मिसाइल को खरीदा है। रूस ने भी अपने संवेदनशील क्षेत्रों में इसी मिसाइल को तैनात किया हुआ है। उन्होंने कहा कि लड़ाकू राफेल और अमेरिकी अपाचे हेलीकाप्टर के शामिल होने से हमारी युद्ध क्षमता में काफी इजाफा हुआ है। हमारे बेड़े में नए हथियारों के एकीकरण के साथ हमारी आक्रामक स्ट्राइक क्षमता और भी अधिक शक्तिशाली हो गई है।

आईएएफ चीफ ने मिग-21 की दुर्घटनाओं के बारे में एक सवाल के जवाब में कहा कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस साल ही अब तक तीन दुर्घटनाएं हो चुकी हैं लेकिन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि दुर्घटनाओं की संख्या में कमी आई है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि वायुसेना का उड़ान भरने वाला प्रत्येक विमान सभी जांचों से सख्ती के साथ गुजरता है। उन्होंने यह भी कहा कि साइबर हमलों से बचने के लिए हमने अपने नेटवर्क को सख्त किया है। हम जल्द ही भारतीय वायु सेना के लिए झुंड ड्रोन विकसित करने के लिए स्टार्टअप को अनुबंध देंगे।

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति पर एक सवाल के जवाब में वायुसेना प्रमुख ने कहा कि चीनी वायु सेना अभी भी अपनी तरफ के तीन हवाई अड्डों पर मौजूद है और ड्रैगन लगातार सीमा पर अपना इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है। हालांकि उन्होंने कहा कि भारत लगातार पैनी निगरानी कर रहा है और जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार है। उन्होंने कहा कि एयरफोर्स को लड़ाकू विमानों की 42 स्क्वाड्रन की जरूरत है, लेकिन अगले 10-15 साल में तो यह नहीं हो पाएगा। अगले कुछ सालों में 30-35 स्क्वाड्रन के बीच रहेगी। वायुसेना प्रमुख ने कहा कि आधुनिकीकरण के तहत वायुसेना तीनों सशस्त्र बलों के एकीकरण के लिए उत्सुक है। तीनों सेनाओं की संयुक्त योजना और संचालन के निष्पादन के परिणामस्वरूप हमारी युद्ध क्षमता में अधिकतम वृद्धि होगी।

एयर चीफ चौधरी ने कहा कि महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की सुरक्षा के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए जा रहे हैं। हम लंबे समय से स्वदेशी एंटी-ड्रोन क्षमता पर काम करने का प्रयास कर रहे हैं। हम वायु सेना के लिए काउंटर यूएएस प्रणाली को डिजाइन और विकसित करने के लिए स्टार्टअप्स को मौका दे रहे हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और पीओके में हवाई क्षेत्रों के संबंध में हमें ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे छोटे स्ट्रिप्स हैं जो कुछ हेलीकॉप्टरों को ले जाने में सक्षम हैं। अफगान सीमा की ओर की स्ट्रिप्स शायद अफगानिस्तान से अपने ही लोगों को बचाने के लिए है। इस साझेदारी से डरने की कोई बात नहीं है लेकिन चिंता सिर्फ पश्चिमी तकनीक की है, जो पाकिस्तान से चीन तक जा रही है। इसके बावजूद कई उच्च ऊंचाई वाले मिशनों को लॉन्च करने में चीन की क्षमता कमजोर रहेगी।

वायुसेना प्रमुख ने कहा कि हमारी 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान की आवश्यकता डीआरडीओ द्वारा विकसित किए जा रहे एएमसीए (स्वदेशी पांचवीं पीढ़ी के विमान) से पूरी होगी और यह सीमा पार की क्षमता से मेल खाएगा। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) से जल्द ही वायुसेना को 6 लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर मिलने वाले हैं। कोयंबटूर में एयरफोर्स की एक महिला ऑफिसर के साथ टू फिंगर टेस्ट किये जाने के सवाल पर इंडियन एयरफोर्स चीफ ने कहा कि टू फिंगर टेस्ट नहीं हुआ था, इसे गलत रिपोर्ट किया गया है। एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी ने कहा कि कोविड की दूसरी लहर में हमारे ट्रांसपोर्ट फ्लीट ने मेडिकल सप्लाई और ऑक्सीजन को 18 देशों से लाने और ले जाने का काम किया। इसमें हमारी वायु सेना ने क़रीब 1100 घंटों की उड़ान भरी और भारत में ही 2600 घंटों की उड़ान भरी।

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