विदाई भाषण में भावुक हुए गुलाम नबी आजाद, कहा- भारतीय मुसलमान होने पर गर्व

विदाई भाषण में भावुक हुए गुलाम नबी आजाद, कहा- भारतीय मुसलमान होने पर गर्व

New Delhi: राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर के चार सदस्य गुलाम नबी आजाद, शमशेर सिंह, मीर मोहम्मद फैयाज और नजीर अहमद का कार्यकाल आज समाप्त हो गया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को राज्यसभा में चारों सदस्यों के साथ कार्यकाल समाप्ति के बाद विदाई देते हुए भावुक हो उठे। जिसके बाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद भी अपने विदाई भाषण में भावुक हो गये। इस दौरान उन्होंने कश्मीर से आतंकवाद के खात्मे की कामना की और कहा कि वो खुश किस्मत हैं कि उन्हें पाकिस्तान जाने का मौका नहीं मिला। उन्हें एक हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर गर्व है।

भारतीय मुसलमान होने पर गर्व
राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अन्य नेताओं के विदाई वक्तव्य के बाद गुलाम नबी आजाद ने अपने संबोधन में कहा कि उनका जन्म जम्मू में हुआ लेकिन उनकी शिक्षा कश्मीर में हुई। उन्होंने वह दौर भी देखा है जब वहां पाकिस्तान की आजादी के दिन 14 अगस्त को जश्न मनाया जाता था। तब वह उन गिने-चुने लोगों में से होते थे जो भारत का गणतंत्र दिवस मनाते थे। आज वह जब पाकिस्तान की ओर देखते हैं तो उन्हें भारतीय मुसलमान होने पर गर्व महसूस होता है।

सौभाग्यशाली हूं, जो कभी पाकिस्तान नहीं गया
आजाद ने कहा, “मैं कभी पाकिस्तान नहीं गया और मुझे लगता है कि मैं भाग्यशाली हूं। मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में से हूं, जो कभी पाकिस्तान नहीं गए। जब मैं पाकिस्तान में परिस्थितियों के बारे में पढ़ता हूं, तो मुझे हिंदुस्तानी मुसलमान होने पर गर्व महसूस होता है।” आजाद ने अपने भाषण में उन क्षणों का जिक्र किया जब वह संजय गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के निधन पर बहुत रोए थे। ओडिशा में बाढ़ के दौरान हालात देखकर और जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले में गुजरात के लोगों की मौत पर भी वह बहुत रोए थे। गुजरात के लोगों पर आतंकी हमले का जिक्र आते ही वह भावुक हो गए और कहा कि आज वह यही दुआ करते हैं कि इस देश से आतंकवाद खत्म हो जाए।

उजड़े आशियाने के लिए फिर से प्रयास करना होगा
कश्मीरी पंडितों का जिक्र करते हुए आजाद ने कहा कि उजड़े आशियानों के लिए आज हमें फिर से प्रयास करना है। उन्होंने कहा, “गुजर गया वो जो छोटा सा एक फसाना था, फूल थे चमन था आशियाना था। न पूछ उजड़े नशेमन की दांस्तां, मत पूछ कि चार तिनके थे लेकिन आशियाना तो था।” उन्होंने सदन से अलग होने के बाद भी मिलते रहने तथा याद किए जाने को लेकर आशा व्यक्त करते हुए कहा, “दिल ना उम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है, लम्बी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।”

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