9 महीने में 43 हज़ार से अधिक महिलाओं का हुआ संस्थागत प्रसव

9 महीने में 43 हज़ार से अधिक महिलाओं का हुआ संस्थागत प्रसव

Chhapra: जिले में संस्थागत प्रसव को लेकर महिलाओं व परिवारों में जागरूकता बढ़ रही है। वर्ष 2019 में अप्रैल से दिसंबर तक कुल 43006 महिलाओं का संस्थागत प्रसव हुआ है। जिले के छपरा शहरी, गड़खा व दरियापुर प्रखंड में सबसे ज्यादा संस्स्थागत प्रसव हुआ है। जिसमें छपरा शहरी में 4982, गड़खा में 3331 और दरियापुर में 3321 महिलाओं का संस्थागत प्रसव हुआ है।

जननी सुरक्षा योजना के तहत प्रोत्साहन राशि:

सरकारी संस्थानों में संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत जननी सुरक्षा योजना की शुरुआत की गयी है। इसके अंतर्गत सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने पर ग्रामीण लाभार्थी को 1400 रूपये की प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान किया गया है। वहीँ शहरी लाभार्थियों को 1000 रूपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। साथ ही इसके लिए आशाओं को भी प्रोत्साहन राशि दी जा रही है, जिसमें प्रति लाभार्थी संस्थागत प्रसव कराने पर ग्रामीण क्षेत्र की आशा को 600 रूपये एवं शहरी क्षेत्र की आशा को 400 रूपये दिए जाने का प्रावधान है।

सुरक्षित प्रसव के लिए अस्पताल जाना जरुरी:

सुरक्षित प्रसव के लिए लाभार्थी को अस्पताल जाना जरुरी होता है। इसमें आशाओं द्वारा मुख्य भूमिका निभाई जा रही है। आशा घर-घर जाकर संस्थागत प्रसव को लेकर महिलाओं को जागरूक करती है एवं गृह प्रसव के करम होने वाले खतरों से महिलाओं एवं परिवारों को पूर्ण जानकरी देती है। इसके लिए प्रसूति महिला को घर से अस्पताल एवं प्रसव के बाद अस्पताल से घर जाने के लिए नि:शुल्क एम्बुलेंस की सेवा दी जाती है। हर वार्ड में आशा कार्यकर्ता है जो प्रसूति महिलाओं की देखभाल कर उन्हें अस्पताल तक लाती है। संस्थागत प्रसव के बाद अस्पताल से बच्चें को जन्म प्रमाण पत्र भी निर्गत किया जाता है।

संस्थागत प्रसव से मातृ शिशु मृत्यु दर में कमी:

सिविल सर्जन डॉ. माधवेश्वर झा ने बताया कि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए संस्थागत प्रसव जरूरी है। जन्म का पहला घंटा नवजात शिशु के लिए महत्वपूर्ण होता है। जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी से दम घुटने से नवजात शिशु को गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। गृह प्रसव की जगह संस्थागत प्रसव आवश्यक है, ताकि बर्थ एफ्सिक्सिया की स्थिति में विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में नवजात को उचित इलाज की समुचित व्यवस्था मिल सके।

जन्म के 2 वर्षो तक फालोअप:

जिला स्वास्थ्य समिति के डीसीएम ब्रजेंद्र कुमार सिंह ने बताया संस्थागत प्रसव को बढ़ाना देने में आशा की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। आशा के माध्यम से गर्भवती माताओं की ट्रैकिंग करायी जाती है। फिर प्रसव होने तथा उसके बाद दो वर्ष तक उसका फालोअप कराया जाता है। मदर चाईल्ड ट्रेकिंग सिस्टम के तहत यह सब किया जाता है। इसी प्रणाली के तहत आशा गर्भवती माताओं को स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण तथा संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करती हैं।

संस्थागत प्रसव के प्रखंडवार आंकड़ें वर्ष 2019( अप्रैल से दिसंबर):

• अमनौर- 1617
• बनियापुर- 2324
• दरियापुर- 3321
• दिघवारा-2377
• एकमा- 2783
• गड़खा- 3331
• इसुआपुर- 1390
• जलालपुर- 2426
• लहलादपुर-714
• मकेर- 1167
• मांझी- 1881
• मढौरा- 2535
• मशरक- 1299
• नगरा- 2238
• पानापुर- 975
• परसा- 2632
• रिविलगंज- 876
• छपरा शहरी- 4982
• सोनपुर- 2816
• तरैया- 1322

 

(आँकड़े स्वास्थ्य विभाग, सारण छपरा से प्रेस विज्ञप्ति के आधार पर दिए गए हैं)

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