Site icon | छपरा टुडे डॉट कॉम | #ChhapraToday.com

KBKJ Film Review: Farhad Samji की झोली में एक और फ्लॉप, कमजोर कहानी से सजी है फ़िल्म

‘KBKJ’ One Word Review : Average

कभी सोचते हैं कि फरहाद सामजी पर एक किताब लिखा जाए। अब निर्देशक साहब से रिश्ता ही इतना पुराना है कि क्या ही बोले। खैर फ़िल्म पर आते हैं…। एक रीमेक फ़िल्म जिसके निर्देशक से वैसे ही कुछ उम्मीद नहीं था। अब पंच लाइन लेखक को निर्देशन करने को मिल जाएगा तो परिणाम ‘Bachchan Pandey’, ‘Entertainment’ और अब KBKJ जैसा ही होगा। फ़िल्म के फर्स्ट हाफ में क्या और क्यों हो रहा है समझना मुश्किल है। वहीं सेकंड हाफ में जरूर कुछ बवाल एक्शन दर्शकों में जोश पैदा करता है। फ़िल्म में मसाला डालने की भरपूर कोशिश हुई है, लेकिन तीन लेखक मिल के भी कहानी के लिए कुछ कर नहीं पाते। कुछ किरदार को छोड़ दे तो पूरी फिल्म में अव्यवसायिक (Unprofessional) लोगों से एक्टिंग कराने की नाकाम कोशिश की गई है। आखिर में 15 मिनट का लंबा क्लाइमेक्स भौकाल जरूर बनाता है, लेकिन मज़ेदार नहीं लगता। फ़िल्म की कमजोर कड़ी हैं बॉक्सर ‘विजेंदर सिंह’, जिनका एक्टिंग से कोई संबंध नहीं है। ‘अभिमन्यु सिंह’ का छोटा किरदार बावजूद इसके उनका कम समय के लिए पर्दे पर आना दर्शकों के दिल मे जगह बना गया। “इंसानियत में है दम, वन्दे मातरम”, “अच्छी तरह समझाया अब बुरी तरह मारूंगा”, “इनके डर से ज्यादा मेरा ख़ौफ़ है” जैसे कुछ एक चुनिंदा Dialogue, निरर्थक पठकथा, ‘शहनाज गिल’, ‘राघव जुआल’, ‘सिद्धार्थ निगम’, ‘जस्सी गिल’ जैसे कलाकारों की ओवरएक्टिंग, ‘सतीश कौशिक’ का छोटे किरदार में बढ़िया काम, ‘जगपथि बाबू’ का शानदार विलेन किरदार, दक्षिण भारत की संस्कृति, ‘पूजा हेगड़े’ की खूबसूरती और कमजोर कहानी से सजी है फ़िल्म।

कहानी, पठकथा और संवाद

फिल्मी भाषा में बात करें तो कहानी पठकथा और संवाद, फ़िल्म की तीनों कड़ियाँ कमजोर ही लगती है। फ़िल्म की कहानी को तीन लेखकों ने लिखा है, (Farhad Samji, Sparsh Khetarpal, Tasha Bhambra) इसके बावजूद भी वो फ्लेवर, वो मसाला और वो उत्साह कहानी में नज़र नहीं आती। यहाँ आपको बता दे कि फरहाद सामजी फ़िल्म के लेखक होने के साथ निर्देशक की भूमिका में भी हैं। बात कहानी की करें तो, फ़िल्म की कहानी शुरू होती है दिल्ली की एक बस्ती में जहाँ ‘भाईजान’ (सलमान खान) रहते हैं। ‘भाईजान’ के साथ उनके भाई ‘लव’, ‘इश्क’ और ‘मोह’ रहते हैं।

कहानी आगे बढ़ती है और ये पता चलता है कि ‘भाग्या’ नाम की किसी लड़की से भाईजान प्यार करते थें। ‘भाग्या’ ही वो लड़की है जिसके कारण ‘भाईजान’ ने अभी तक शादी नहीं की है। वो कारण क्या है ये आपको फ़िल्म देख कर पता चलेगा। ‘भाईजान’ के कंवारे होने से उनके भाई भी कंवारे मर रहे हैं। मज़े की बात ये है कि सभी भाइयों की अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड्स है। लेकिन ‘भाईजान’ से बताने में सबको डर लगता है। ‘नदीम चाचा’ (सतीश कौशिक) के बताने पर की अगर फिर से कोई लड़की भाईजान की ज़िंदगी मे आजायेगी तो शायद ‘भाईजान’ शादी कर लेंगे। ये बाते जान कर तीनो भाई ने एक दिन मिलकर भगवान से दुआ माँगा, जिसका फल ऊपर वाले ने ‘भाग्या’ के रूप में दिया। उनकी बस्ती में ‘भाग्या’ (पूजा हेगड़े) की एंट्री होती है। वहीं कहानी की दूसरी तरफ बस्ती पर एमएलए ‘महावीर’ (विजेंद्र सिंह) की नज़र है, जो बस्ती की जमीन को हड़पना चाहता है।

समय के साथ ‘भाग्या’ और ‘भाईजान’ धीरे-धीरे एक दूसरे को पसंद करने लगते है। आगे शादी के लिए ‘भाग्या’ अपने बड़े भाई ‘बालकृष्ण’ (वेंकटेश) से ‘भाईजान’ को मिलवाती है। यहाँ से कहानी में एक नया मोड़ आता है और शुरू होता है एक्शन और ‘सलमान फैक्टर’ का नया अध्याय। लेकिन पठकथा और संवाद इतना कमजोर है कि चाह कर भी दर्शक खुद को फ़िल्म से जोड़ नहीं पाता। एक तरफ जहाँ ‘भाईजान’ की शादी को लेकर ‘भाग्या’ के बड़े भाई ‘बालकृष्ण’ (वेंकटेश) और उनका परिवार खुशी में झूम रहे है वहीं दूसरी तरफ ‘बालकृष्ण’ (वेंकटेश) का पुराना दुश्मन और फिल्म का विलेन ‘नागेशवर’ (जगपति बाबू) अपना बदला लेने की तैयारी में है। क्या भाग्या की शादी हो पाती है ? क्या महावीर (विजेंद्र सिंह) बस्ती की जमींन ले पायेगा ? क्या नागेशवर (जगपति बाबू) वेंकटेश से अपना बदला ले पायेगा ? क्या भाईजान अपनी बस्ती को बचा पायेगा ? इन सभी का जवाब आपको फ़िल्म खत्म होते मिलता है।

Actor Performance

फ़िल्म में नए कलाकारों को मौका जरूर दिया गया है लेकिन, क्या वो कलाकार एक्टिंग की परिभाषा को समझते हैं शायद इसपे निर्देशक को ध्यान देना चाहिए था। पूरी फिल्म को एक समीक्षा की दृष्टि से अगर देखें तो कलाकारों का काम काफी अव्यवसायिक (Unprofessional) लगता है। कुछ एक कलाकार जैसे ‘सतीश कौशिक’, ‘वेंकटेश दग्गुबाती’, ‘अभिमन्यु सिंह’, ‘रोहिणी हट्टनगड़ी’ को छोड़ दे तो किसी की एक्टिंग में वो बात नहीं जिसका जिक्र यहाँ पर किया जाए। ‘पूजा हेगड़े’ के पास दिखाने के लिए अपनी खूबसूरती है जिसे पर्दे पर लाने में निर्देशक सफल रहा है। ‘सलमान खान’ को देख कई बार यही लगता है कि ‘वांटेड’ फ़िल्म का कोई सिन चल रहा है। एक्शन अवतार में ‘सलमान खान’ बवाल जरूर लगते हैं लेकिन इस फ़िल्म की पठकथा उनके साथ न्याय नहीं कर पाती है। यहाँ विशेष तौर पर थोड़ा सा ज़िक्र ‘अभिमन्यु सिंह’ का करना बनता है। लगातार अपने अभिनय से दर्शकों के दिल तक पहुँचने में ‘अभिमन्यु सिंह’ कामयाब रहें हैं। बात फ़िल्म की करें या वेब सीरीज की, ‘अभिमन्यु सिंह’ ने हर जगह अपना लोहा मनवाया है। हाल ही में आयी वेब सीरीज ‘खाकी : द बिहार चैप्टर’ में उनके द्वारा निभाया गया किरदार ‘SHO रंजन कुमार’ को काफी ज्यादा पसंद किया गया था। ‘सतीश कौशिक’ की अगर बात करें तो छोटा किरदार होने के बावजूद उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया।

Special Mention

4 साल बाद ‘सलमान खान’ अपने फ़िल्म को लेकर बड़े पर्दे पर आए थें। ऐसे में इतना कमजोर प्रोजेक्ट मेकिंग देख सवाल उठना लाज़मी है। एक तरफ जहाँ मसाला फिल्मों की सूची में मलयालम और तेलगु इंडस्ट्री ने नया पैमाना गढ़ा है वहाँ ये फ़िल्म दूर दूर तक कहीं दिखाई नहीं पड़ती है। फ़िल्म की कॉस्टिंग बहुत कमजोर है। कहानी और किरदार पर मेहनत बिल्कुल भी नहीं किया गया है।

Direction & Technical Aspects

फ़िल्म का निर्देशन किया है ‘फरहाद सामजी’ ने जो कि इस फ़िल्म के लेखक भी हैं। निर्देशक के रूप में फरहाद की ये आठवीं फ़िल्म है, जिसमे से 6 फिल्में बॉक्स आफिस पर फ्लॉप साबित हुई है। एक निर्देशक के रूप में फरहाद कभी सफल रहें ही नहीं लेकिन, ये बॉलीवुड की देन है जो फ़रहाद को एक निर्देशक के रूप में देखती है। एक लेखक के रूप में अगर बात करें तो ‘किसी का भाई किसी जी जान’ समेत 9 फिल्मों की कहानी को फरहाद सामजी ने लिखा है। मज़े की बात ये है कि इनमें से 5 फिल्में फ्लॉप रहीं हैं। बाकी ‘फरहाद सामजी’ के बारे में और लिखने की जरूरत है नहीं, पाठक ख़ुद समझदार हैं। वहीं इस फ़िल्म में फरहाद के निर्देशन की बात करें तो, एक निर्देशक के रूप में सामजी का काम बहुत धीमा है। कहानी को दर्शकों के मूड तक पहुँचाने में फ़रहाद कामयाब नहीं हो पाए हैं। बात फिर कहानी पर आकर रुक जाती है। कहानी में वो मसाला है नहीं, ना ही ऐसा कोई Dialogue है जिसको दर्शक याद रख सके। महज एक Dialogue है जो सिनेमा हॉल में दर्शकों की ताली बटोर पाई है… “इंसानियत में है दम, वन्दे मातरम”…।

‘रवि बसरूर’ का म्यूजिक जरूर आपको उत्साहित करेगा। ‘रवि बसरूर’ वही नाम है जिसकी चर्चा हाल ही में आई फ़िल्म ‘भोला’ के बैकग्राउंड स्कोर के लिए हुआ था। रवि का काम इस फ़िल्म में भी शानदार रहा है। लगातार ये दूसरी फिल्म है जहाँ रवि ने अपनी म्यूजिक से दर्शकों में खलबली पैदा की है।

क्यों देखें ये फ़िल्म ?

छोटा मगर दमदार रोल में अ’भिमन्यु सिंह’ के किरदार को अपने ज़हन में कैद करना चाहते हैं, ‘सलमान खान’ को शर्ट उतार कर एक्शन करते देखना चाहते हैं, साथ ही ‘पूजा हेगड़े’ की खूबसूरत स्माइल के फैन हैं तो ये फ़िल्म आपके लिए है।

Review by : Abhinandan Kumar Dwivedi (Former RJ)

Exit mobile version