Birthday Special: पढ़े हरिवंश राय बच्चन की दिल को छूने वाली कविताएं

Birthday Special: पढ़े हरिवंश राय बच्चन की दिल को छूने वाली कविताएं

नई दिल्ली: महाकवि हरिवंश राय बच्चन जी का आज जन्मदिन है.  हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव बाबूपट्टी में एक कायस्थ परिवार मे हुआ था.
 
पढ़े हरिवंश राय बच्चन की दिल को छूने वाली कविताएं…

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वाश रगों मे साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

डुबकियां सिन्धु मे गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोंती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

असफलता एक चुनौती है , इसे स्वीकार करो ,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो .

जब तक ना सफल हो , नींद चैन को त्यागो तुम ,
संघर्ष का मैदान छोड़कर मत भागो तुम.
कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

जो बीत गई सो बीत गई
जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
यह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
हरिवंश राय ‘बच्‍चन’ की यह पंक्तियां आज भी काव्यप्रेमियों की जुबान पर है। उनकी रचना मधुशाला हिंदी साहित्य की बेस्ट सेलर है। हिंदी के लोकप्रिय कवि व रचनाकार हरिवंश राय ‘बच्चन’ का आज जन्मदिन है। वो कविता के आकाश के वो सितारे रहे जिसने लाखों दिलों पर राज किया। उनके शब्द आज भी लोगों की जुबान पर उनकी याद को जिंदा कर देते हैं।

वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने, हों बड़े
एक पत्र छाँह भी
मांग मत! मांग मत! मांग मत!
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!

अग्निपथ की लाइनें भी उनकी लेखनी को हमसब के बीच लाकर खड़ा कर देती हैं।  इलाहाबाद में 27 नवंबर 1907 को जन्मे बच्चन ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री ली और भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। उन्होंने कुछ समय पत्रकारिता की और एक स्कूल में पढ़ाया भी। पढ़ाते हुए ही उन्होंने एमए किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही वह 1941 में अंग्रेजी के लेक्चरर हो गए। एक लेक्चरर और लेखक हरिवंश राय बच्चन की अग्निपथ की ये पंक्तियां भी कविता के आकाश में हमेशा के लिए अमर हो गईं।

”यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु, स्वेद, रक्त से
लथ-पथ, लथ-पथ, लथ-पथ,  
अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ! ‘

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