Chhapra: संस्कृत विभाग, जयप्रकाश विश्वविद्यालय लोक भाषा प्रचार समिति, बिहार शाखा और चातुर्वेद संस्कृत प्रचार संस्थान, बिहार प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संस्कृत सप्ताह का हर्षोल्लासपूर्वक समापन हुआ।
आभासीय माध्यम से संपन्न इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शास्त्र चूड़ामणि आचार्य, लोकभाषा प्रचार समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रो जयशंकर झा ने छपरा के आचार्य कपिल देव शर्मा द्वारा संस्थापित संस्कृत मातृभाषा परिवार और प्रो सतीश चन्द्र झा जनमुखी संस्कृत क्रान्ति में बढ़ चढ़कर भाग लेने वाले डॉ बैद्यनाथ मिश्र की प्रशंसा करते हुए कहा कि संस्कृत मन, वचन और कर्म को शुद्ध करने वाली भाषा है। यह भौतिक विकास और आध्यात्मिक उन्नति की भाषा है। आज भारत के समग्र विकास और मानवता के सर्वाङ्गीण कल्याण हेतु लोगों को संस्कृत आनी चाहिए, संस्कृत का ज्ञान आना चाहिए और यह ज्ञान और प्रयोग वाणी के साथ-साथ कर्म में भी होना चाहिए । एक ओर जहां बोलचाल में संस्कृत चाहिए वहीं दूसरी ओर कर्म व्यवहार में भी संस्कृत (शुद्धता नैतिकता) चाहिए तब जाकर एक सभ्य – सुसंस्कृत समाज बनेगा।
इस अवसर पर सारस्वत अतिथि के रूप में जुड़े नवोदित युवा विद्वान् और कवि डॉ शशिकांत तिवारी ‘शशिधर ‘ने अपनी ओजस्वी और कृष्ण भक्तिमय कविता के द्वारा दर्शकों को जहां एक ओर मंत्र मुक्त कर दिया वहीं सार्वभोम संस्कृत प्रचार संस्थान के संस्थापक पूज्य वासुदेव द्विवेदी के पद चिह्नों पर चलते हुए संस्कृत प्रचार के उपायों पर काम करने की आवश्यकता बताई। जहां एक ओर डॉक्टर तिवारी ने “माधवो नन्दजो वंशिका वादक:” सुनाया वहीं “गन्त्री गच्छति गाड़ी जाती” जैसे छोटे-छोटे बाल बोधगम्य संस्कृत गानों के माध्यम से शिशु वर्ग से लेकर स्नातकोत्तर वर्ग तक संस्कृत प्रचार को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने बल दिया कि संस्कृत विद्या के ह्रास के कारण ही समाज में निर्भया, कोलकाता रेप कांड जैसी कुप्रवृत्तियां फैली हैं। जहां संस्कृत शिक्षा ‘मातृदेवो भव ,’ ‘मातृवत्परदारेषु ‘ संदेश और व्यवहार देती है वहां अशिष्ट व्यवहार कहां से आएगा?
विशिष्ट अतिथि जगलाल चौधरी महाविद्यालय की प्रधानाचार्या डॉ वसुंधरा पांडेय ने दर्शनशास्त्र और संस्कृत के बीच गहरे संबंध को उजागर करते हुए कहा कि तार्किक शक्ति के विकास के लिए और अच्छी दार्शनिक दृष्टि संपन्न करने के लिए संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है। बिना संस्कृत के कोई विद्वान् या दार्शनिक नहीं हो सकता।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए 6 भाषाओं के जानकार आचार्य बदरी नारायण पांडेय ने सरल संस्कृत के द्वारा समाज में संस्कृत के पुनरुत्थान की बात कहीं। उन्होंने सरल और कठिन संस्कृत पद्य को उद्धृत करके स्पष्ट किया कि संस्कृत सरल भी है और कठिन भी है। हम सरलता को अपना कर कठिनता पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ पंडित उद्धव कुमार प्रतिहस्त के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हुआ। सरस्वती वंदना मनीष कुमार गोस्वामी के द्वारा की गई और स्वागत गान अनुषा के द्वारा संपन्न किया गया। अतिथि परिचय डॉक्टर दिवांशु कुमार के द्वारा कराया गया, संचालन अरुण कुमार के द्वारा किया गया। अतिथियों का वाचिक स्वागत संयोजक और संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो वैद्यनाथ मिश्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर आशुतोष द्विवेदी ने किया।
इस अवसर पर लोक भाषा प्रचार समिति के राष्ट्रीय महासचिव विभूति नारायण कर, उपाध्यक्ष प्रोफेसर मनोज कुमार, सचिव डॉक्टर कृष्णकांत झा, उपाध्यक्ष अर्जुन कुमार गुप्ता, शोधार्थी निशिकांत पांडे, इंद्र भूषण तिवारी, प्रबोध कुमार तिवारी, कृष्णानंद, प्राध्यापिका वीणा मिश्रा, डॉक्टर निलेश झा, मनीष कुमार मिश्रा , संस्कृत मातृभाषी मनीषा शर्मा, कुमारी अर्चना सिंह आदि जुड़े रहे।