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बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्रों ने पेश की रिपोर्ट

बिहार राज्य में स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने हेतु बिहार के छात्रों ने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में चल रहे तीन दिवसीय स्वास्थ्य संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की।  रिपोर्ट में बताया कि विकास के अलग अलग आयामों के संदर्भ में जब भी बिहार की चर्चा की जाती है तो अधिकतर अवसर पर इसे संघर्षशील और पिछड़ा ही बताया जाता है।

“स्वास्थ्य संसद 2023” में जब भारत के अलग अलग राज्यों के स्वास्थ्य प्रोफाईल की बात हो तब बिहार राज्य के स्वास्थ्य व्यवस्था की चर्चा बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है । आजादी के अमृतकाल में भारत के कंठहार बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था से राज्य के अंतिम घर और अंतिम व्यक्ति तक को जोड़ने की आवश्यकता है और ज़रूरी है कि इसके लिए परंपरागत व्यवस्था में तीव्रता और नीतिगत तरीके से बदलाव किया जाए ।

बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती ग्रामीण स्तर पर अस्पतालों की कमी है । दरअसल किसी भी राज्य के स्वास्थ्य व्यवस्था की पहली कड़ी ग्रामीण स्तर पर मौजूद प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र ही होते हैं । इसके बाद पंचायत स्तर पर मौजूद प्राथमिक अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र , प्रखंड स्तर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और फिर जिला स्तर पर बनाए गए सदर अस्पताल या रेफरल अस्पताल किसी भी राज्य के स्वास्थ्य व्यवस्था को निर्धारित करते हैं ।

गौरतलब है कि बिहार राज्य में ग्रामीण स्तर पर मौजूद प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र और स्वास्थ्य केंद्र की संख्या अभी भी अपर्याप्त हैं और साथ ही ये स्वास्थ्य केंद्र आज भी कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित है ।

बिहार के पूर्वी चंपारण में जहां 1000 प्राथमिक उप स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए वहां केवल 400 उपस्वास्थ्य केंद्र हैं, मुजफ्फरपुर में 960 उपस्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए लेकिन वहां केवल 500 उपस्वास्थ्य केंद्र हैं । यही स्थिति कमोबेश हर इलाके की है ।आंकड़ों की ये उदासीनता केवल ग्रामीण स्तर के स्वास्थ्य केंद्रों तक ही सीमित नहीं है, जिला स्तर पर बनने वाले सदर अस्पतालों की संख्या में भी ऐसी ही कमी है ।

पूर्वी चंपारण में जहां 50 रेफरल केंद्र होने चाहिए वहां केवल 5 रेफरल केंद्र हैं । इसी तरह मुजफ्फरपुर में भी 58 रेफरल केंद्र के अनुपात में केवल 1 रेफरल केंद्र ही मौजूद है । ऐसे में सबसे जरूरी है कि राज्य सरकार ग्रामीण स्तर पर मौजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या और स्थिति सुधारने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी करे । ग्रामीण स्तर पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने सदर अस्पताल या रेफरल केंद्र पर भी कम भार पड़ेगा और साथ ही गांव के अंतिम घर को भी त्वरित स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध हो पाएगी ।

अस्पतालों में डॉक्टर्स और मेडिकल उपकरणों को चलाने के लिए तकनीशियन की कमी भी बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए बड़ी समस्या है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार बिहार राज्य में कथित तौर पर 2792 डॉक्टर हैं , इसका मतलब यह है कि 43788 लोगो को प्रभावी ढंग से एक ही डॉक्टर द्वारा सेवा दी जा रही है , इस अनुपात को सुधार करने के लिए बिहार के सामने बड़ी चुनौती है।

आंकड़ो के मुताबिक पूरे राज्य में 1899 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है , इनमें महज 439 केंद्र पर ही 4 MBBS डॉक्टर तैनात हैं। डॉक्टरों की संख्या बढ़ानी है तो राज्य सरकार द्वारा हर जिले में एक मेडिकल कॉलेज के साथ नर्सिंग प्रशिक्षण केंद्र भी खुलना चाहिए और डॉक्टरों और नर्सों को उच्च गुणवत्ता के साथ प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

कई बार ऐसा देखा जाता है कि जो डॉक्टर बहाल है , जिनकी ड्यूटी है लेकिन वह अस्पताल में अधिकारियों या सिविल सर्जन के निरीक्षण के दौरान अनुपस्थिति पाए जाते है और उनको ड्यूटी से बर्खास्त भी कर दिया जाता है तो अधिकारियों द्वारा डॉक्टर के ऊपर नकेल कसने चाहिए ताकि प्रतिदिन ईमानदारी पूर्वक ड्यूटी करें।

कुपोषण बिहार के लिए हमेशा से एक चुनौती रहा है । इस रोग से प्रभावित जिले पोषण की रैंकिंग में देश के आखिरी तीस जिलों में शामिल हैं । बिहार का शिवहर जिला 57.3 प्रतिशत के कुपोषण स्टनिंग प्रतिशत के साथ देश भर में सबसे आखिरी पायदान पर है ।

कुपोषण को दूर करने के लिए उठाए गए सरकारी प्रयास नाकाफी है । इस समस्या से निदान के लिए ही आंगनबाड़ी संस्था की शुरुवात की गई थी लेकिन ये विडंबना ही है कि बिहार के आंगनबाड़ी केंद्रों के पास आज भी अपना आंगन नही है ।

बिहार के अधिकतर आंगनबाड़ी केंद्र के पास अपना भवन नहीं है, लिहाजा वहां आधी अधूरी सुवधाएं मिलती हैं। रिपोर्ट ये बताते हैं कि कई बार तीन तीन महीनों के लिए सरकार की तरफ से पोषण आहार की आपूर्ति बंद कर दी जाती है । इसके अलावा इन केंद्रों पर भ्रष्टाचार की अपनी समस्या है, गर्भावस्था में माताओं को मिलने वाले टेकहोम राशन में अक्सर मात्रा की कमी की शिकायत मिलती है और कई बार ये बांटी भी नहीं जाती ।

इसलिए जरूरी है कि सबसे पहले आंगनबाड़ी केंद्रों को अपने भवन मिले और साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों पर पहुंचे । बिहार के स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए जरूरी है कि अब राज्य के आंगनवाड़ी, जीविका और आशा कर्मियों को गुणवतापूर्ण प्रशिक्षण दिया जाए ताकि वो और बेहतर तरीके से राज्य के स्वास्थ्य व्यवस्था में अपनी भागीदारी निभा सके ।

भारत में स्वास्थ्य सस्ता नहीं है, उसके लिए तो बिलकुल भी नहीं है जिनकी दुपहरी खेतों और मेढ़ों पर कटती है । ऐसे में जरूरी है कि केंद्रीय बीमा योजना के अलावा राज्य सरकार एक ऐसे स्वास्थ्य बीमा योजना लाने की पहल करें जिसके नियम और प्रारूप इतने सरल हो कि राज्य के निरक्षर और मजदूर वर्ग के लोग भी उसका सीधा सीधा लाभ उठा सके। इसके अलावा एम्बुलेंस , तमाम सरकारी दावों और वायदों के इतर ये एक ऐसी जरूरत है जिसके पहिए आज भी ग्रामीण इलाकों में नहीं पहुंच पाते जिसके कारण बिहार के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से आए दिन हृदयविदारक तस्वीर देखने को मिलती है ।

राज्य सरकार इसके लिए जिलावार “आपातकाल एम्बुलेंस कंट्रोल रूम” बनाने पर विचार करे । ये कंट्रोल रूम इस बात के लिए जवाबदेह होगा कि ग्रामीण स्तर के “उप स्वास्थ्य केंद्रों ” पर भी एम्बुलेंस की उपलब्धता सुनिश्चित रहे । हाल के समय में राज्य में फर्जी डिग्री वाले डॉक्टरों की संख्या भी काफी बढ़ गई और ये फर्जी डॉक्टर राज्य में एक नए किस्म के “मेडिकल टेररिज्म” को पैदा कर रहे हैं । कभी कहीं बच्चादानी के ऑपरेशन के नाम पर डॉक्टर द्वारा किडनी निकालने की खबर सामने आती है तो कहीं मोतियाबिंद के ऑपरेशन के नाम पर अंधा बनाने की खबर । इसलिए फर्जी डॉक्टरों पर तत्काल करवाई करना भी बहुत जरूरी है।

इस बिहार के टीम में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के 5 छात्र थे जो पांचों बिहार के ही निवासी थे – अभिनंदन पाण्डेय, आकांक्षा हर्ष, भारत सूरज, आकांक्षा राज, स्नेहल चौरसिया इन छात्रों द्वारा बनाई गई रिपोर्ट के बेहतर प्रदर्शन पर विश्वविद्यालय के कुलपति के.जी सुरेश, भारतीय विश्वविद्यालय संघ, भारत सरकार के संयुक्त सचिव आलोक कुमार मिश्रा द्वारा सम्मानित किया गया।

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