भारतीय ज्ञान परंपरा राष्ट्र को विश्वगुरु बनाने में सक्षम: कुलपति प्रो परमेन्द्र कुमार बाजपेई

भारतीय ज्ञान परंपरा राष्ट्र को विश्वगुरु बनाने में सक्षम: कुलपति प्रो परमेन्द्र कुमार बाजपेई

Chhapra: गंगा सिंह महाविद्यालय, छपरा में “विकसित भारत @2047 और भारतीय ज्ञान परंपरा का योगदान” विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो परमेन्द्र कुमार बाजपेई ने विकसित भारत की संकल्पना के निमित्त आर्थिक वृद्धि, सामाजिक प्रगति, पर्यावरणीय स्थिरता, सतत विकास के विविध आयामों की चर्चा करते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा के समृद्ध इतिहास को बतलाया। प्राचीन गुरुकुल परंपरा की महत्ता को स्थापित करते हुए उन्होंने कहा कि शैक्षिक वातावरण को वर्तमान युग के अनुरूप ढलना होगा।

पाठ्यक्रम निर्माण, पाठ्य पुनश्चर्या, आकलन आदि व्यवस्थाएं नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के ध्येय को बल प्रदान करेगी। अंग्रेजी की जरूरत को स्वीकार करते हुए भी हमें अपनी राष्ट्रभाषा के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं को प्राथमिकता देनी है। भारतीय ज्ञान परंपरा में मौलिक शोध को बढ़ावा देने की वकालत करते हुए प्रो बाजपेई ने कहा कि हमें पश्चिम की नकल नहीं करनी है, बल्कि विकास की पूर्व की अवधारणा को धरातल पर उतारना होगा।

अरस्तू के ‘तर्क से सत्य की खोज’ अवधारणा की चर्चा करते हुए उन्होंने प्लूटो, कोपरनिकस, गैलीलियो, न्यूटन, ब्रटेंड रसेल आदि के योगदानों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज भारत दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति है और हमें अपनी ज्ञान परंपरा के समृद्धतम स्वरूप को विश्व पटल के समक्ष रखना है।

संगोष्ठी की शुरुआत मंगलाचरण और दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। स्वागत वक्तव्य देते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सिद्धार्थ शंकर सिह ने संगोष्ठी की महत्ता और विकसित भारत की संकल्पना को बतलाया।

भारतीय ज्ञान परंपरा के समृद्घ इतिहास की चर्चा करते हुए शैक्षिक नवनिर्माण के विविध सोपानों की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक वातावरण को बेहतर बनाकर ही हम अपनी युवा पीढ़ी को समृद्ध और सक्षम बना पाएंगे और तभी वे राष्ट्र निर्माण में अपनी समुचित भागीदारी निभा पाएंगे।

नेपाल के संस्कृत विश्वविद्यालय से आए प्राध्यापक डॉ गोविंद प्रसाद दहल ने अपने संबोधन में भारत-नेपाल मैत्री संबंधों की विशद चर्चा की और कहा कि विकसित भारत की संकल्पना फलीभूत होने से भारत के पड़ोसी देश भी लाभान्वित होंगे।

राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद, भारत सरकार के निदेशक डॉ शम्स इकबाल ने अपने ऑनलाइन संबोधन में भारतीय भाषाओं की समृद्धता के लिए भाषायी आदान-प्रदान की जरूरत पर बल दिया।

भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी जय प्रकाश सिंह ने संगोष्ठी में अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीय बुद्धिजीवियों के देश पलायन को रोकना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि उनकी सेवा और योगदान से हमारा देश लाभान्वित हो सके। उन्होंने विश्वास जतलाया कि हमारा देश विश्वगुरु और सोने की चिड़िया के प्राचीन गौरव को जरूर हासिल करेगा।

फ्रांस के विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने अपने ऑनलाइन व्याख्यान में भारत के प्राचीन शिक्षा प्रणाली और तक्षशिला, नालंदा विश्वविद्यालय के गौरव की चर्चा करते हुए बतलाया कि विकसित भारत की संकल्पना को धरातल पर उतारने के लिए भारतीय शिक्षा व्यवस्था, भारतीय सामाजिक व्यवस्था, भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था और भारतीय तकनीकी व्यवस्था को बेहतर बनाने की जरूरत है।

संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो रास बिहारी प्रसाद सिंह ने महाविद्यालय के इस आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि मानव केंद्रित, सतत विकास, प्रकृति संरक्षण, क्षमता एवं योग्यता के अनुरूप लाभ ही विकसित भारत का लक्ष्य है। उन्होंने K शेप्ड डेवलपमेंट की नयूनता की चर्चा करते हुए मानव केंद्रित विकास की अवधारणा को रेखांकित किया।

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में स्मारिका का लोकार्पण मंचस्थ विद्वानों द्वारा किया गया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में पेपर प्रजेंटेशन में देश के अलग-अलग हिस्सों से लगभग 40 प्रतिभागी ऑफलाइन और 30 प्रतिभागी ऑनलाइन अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किए। प्रतिभागियों को महाविद्यालय की ओर से सर्टिफिकेट भी प्रदान किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कई सारे प्राध्यापक, महाविद्यालय के पूर्व प्रचार्यगण, महाविद्यालय के सभी शिक्षक और बहुत सारे छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

जानकारी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के मीडिया प्रभारी डॉ कमाल अहमद ने दी। 

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