देश तो आज़ाद है, लेकिन अभी भी हमें इन चीज़ों से चाहिए आजादी

देश तो आज़ाद है, लेकिन अभी भी हमें इन चीज़ों से चाहिए आजादी

By- Archana Kishore

आज़ादी… वही आज़ादी जो हमें 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से मिली थी। अंग्रेजों से लड़ाई हमारे हक़ की लड़ाई थी। जिसकी जीत में हमें आज़ादी मिली। उस दिन हमें आज़ादी मिल तो गई पर हम अब भी गुलाम हैं। इसे हम कड़वा सच ही कह सकते हैं कि आज़ादी मिले इतने साल बीत जाने के बाद भी हम आज़ाद नहीं हो पाए। आज़ाद ख्याल और आज़ाद ज़िंदगी अब भी हमारे देश में बहुत से लोगों के लिए एक सपना हैं। हमारे देश में रहने वाली महिलाएं, चाय की दुकानों या ढाबे पर काम करने वाले छोटे बच्चे, किसान, दलित और आदिवासी इन सभी की ज़िंदगी से आज़ादी अब भी बहुत दूर है।

अंग्रेजों से आज़ादी मिले आज सात दशक से ज़्यादा हो गए हैं। लेकिन सभ्यता, संस्कृति, परंपरा और सामाजिक बंधनों के नाम पर हम अब तक गुलाम हैं। और ये गुलामी आज अंग्रेजों की वजह से नहीं है। हमारी ख़ुद की वजह से हैं। हमारी सोच की वजह से हैं। सोच जो महिलाओं को घर से निकलने नहीं देती। जो बाहर निकलती हैं उन्हें आगे नहीं बढ़ने देती।

आज आज़ादी को इतने साल हो गए

पर हम आज़ाद होकर भी गुलाम हो गए

हम आज़ाद हो गए अंग्रेजों से

पर अपनी ही मानसिकता के गुलाम हो गए

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक रोज 100 से अधिक महिलाओं से रेप होता है। 2011 के आंकड़ों के अनुसार हर 90 मिनट में एक दुल्हन दहेज़ की वजह से मरती हैं। हर साल एसिड अटैक के 250-300 मामले दर्ज होते हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 68% लड़कियों को रोजगार और 17% को शादी के नाम पर वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है।

सब तो बेचा जाता है, यहां कोयले से लेकर हीरा तक
कटे हुए बाल, मरी हुई मुर्गी और सुअर का गोश्त तक
तो वे लोग क्यों शर्मिंदा हों जो औरतें बेचते हैं???
– एकता नाहर

इसके अलावा बाल मज़दूरी के आंकड़ों को देखे तो जब 2011 जनगणना हुई थी तब हमारे देश में 1 करोड़ से ज़्यादा बाल मजदूर थे। और अभी चल रहा है साल 2019…। आंकड़ों का सही अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। बाल मज़दूरी का कारण??? वही गरीबी और अशिक्षा। रेस्‍तरां और होटल में खाने जाने की उम्र में वहां झूठे बर्तन धुलते हैं। पटाखे फोड़ने की उम्र में पटाख़े और कोयले की कारखानों में काम करते हैं। मेला घूमने जाने की उम्र में मेंला में खिलौने बेचते हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड के मुताबिक देश में हर रोज 290 बच्चे ट्रैफिकिंग, जबरन मजदूरी, बाल विवाह, यौन शोषण जैसे अपराधों के शिकार होते हैं। इन्हें क्या पता आज़ादी क्या होती हैं।

दलित और आदिवासी समाज… इन्हें आज़ादी तो मिली पर समानता नहीं। संविधान ने समानता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार सभी को दिया हैं। लेकिन हर किसी को मिला नहीं।

आज हम आज़ादी की 73 वीं सालगिरह मना रहे हैं। लेकिन आज भी हमारे देश की हर एक महिला नहीं कह सकती कि वो आज़ाद हैं। ग़रीब बाल मजदूर नहीं कह सकते कि वो आज़ाद हैं। दलित और आदिवासी समाज का हर एक शक्स नहीं कह सकता कि वो आज़ाद हैं। फिर कैसी आज़ादी?? किसकी आज़ादी??

अक्सर ही 15 अगस्त और 26 जनवरी को ” हम होंगे कामयाब एक दिन, मन में हैं विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन” सुनने को मिलता। जो एक उम्मीद जगाता है, परिस्थितियों के सही होने की। सही हमें ही करना है।

Note: यह लेखक के अपने विचार हैं.

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