छपरा (संतोष कुमार ‘बंटी’): ‘दलित’ एक ऐसा नाम जिसके उपर हो रही राजनीति शायद कभी समाप्त नहीं होगी. इस शब्द के प्रति अपनत्व को देखकर लगता है कि यह सभी के चहेते तो हैं, लेकिन असलियत का पता तो इस नाम के साथ जीने वाले लोगों के पास ही जाकर लगाया जा सकता है. जहां सरकार और प्रशासन द्वारा इन दलितों के प्रति दिखाए जा रहे अपनत्व की सच्चाई का पता चलता है.
दलित समुदाय के लोग यह कहने को विवश हो चुके हैं कि ‘दलित’ शब्द हमें समाज के अन्य वर्गों से अलग तो करता है लेकिन इसका भाव हमेशा नकारात्मक होता है. दलितों के साथ हो रहे भेद-भाव का प्रबल उदाहरण छपरा के कटहरी बाग के पास स्थित दलित बस्ती है जहां रहने वाले लोग प्रतिदिन घुट-घुट कर जीने को विवश हैं. शहर के बीचों-बीच कटहरी बाग़ के वार्ड नंबर 35 में दलित बस्ती है. जहाँ पिछले कई वर्षो से सुलभ शौचालय बना हुआ है. जिसकी जानकारी शायद आम लोगों को भी नहीं है.
जर्जर अवस्था में पहुँच चुका यह शौचालय अपनी दुर्दशा पर रो रहा है. शौचालय की टंकी पूरी तरह से भर चुकी है. साफ सफाई का तो कोई नामो निशान तक नही है और न ही शौचालय की टंकी को साफ करने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गयी है. जिसके कारण अब शौचालय से निकलने वाली गन्दगी खुली जगहों पर बह रही है. गन्दगी के कारण आसपास की जमीन ही नही बल्कि पूरा का पूरा मुहल्ला या यूँ कहें कि पूरे शहर का वातावरण प्रदूषित हो रहा है. बावजूद इसके यहाँ किसी राजनेता या जिला प्रशासन का ध्यान नही जाता है. ऐसे में यहाँ रहने वाले करीब 100 दलित परिवार सिर्फ उपर वाले के रहमो करम पर जैसे-तैसे अपनी जिंदगी गुजर बसर कर रहे है.
क्या कहते हैं स्थानीय निवासी:
सुलभ शौचालय से 5 मीटर की दुरी पर रहने वाले जिला निगरानी और अनुश्रवण समिति/जिला सामाजिक सुरक्षा समिति/अनुसूचित जाति जनजाति सतर्कता एवं अनुश्रवण समिति के सदस्य धर्मनाथ राम का कहना है कि दलित सिर्फ राजनीति का माध्यम बनकर रह गया है. दलितों के उत्थान की बात तो होती है लेकिन जमीनी स्तर पर उत्थान नही होता.
बस्ती के दीनदयाल राम और कृष्णा राम ने बताया कि शहर के बीचों बीच हमारी बस्ती है, लेकिन यह बस्ती सुदूर गाँव से भी बदत्तर स्थिति में है. बस्ती के प्रवेश द्वार पर ही लोगों द्वारा दलित बस्ती होने के कारण जानबूझकर कूड़ा फेंका जाता है. जिसके कारण यहाँ रहने वाले लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है. बस्ती में बना सुलभ शौचालय सिर्फ नाम तक ही सीमित है. हवा के झोंको के साथ शौचालय से निकलने वाली गन्दगी की बदबू अचानक गर्दन मरोड़ने लगती है. शौचालय की बदत्तर स्थिति को लेकर प्रमंडलीय आयुक्त, जिलाधिकारी सारण, नगर परिषद् को पत्र देकर अवगत कराया गया लेकिन यह सब सिर्फ फाइलों में दब कर रह गया. वार्ड आयुक्त को भी कई बार सफाई को लेकर कहा गया लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला.
दलित बस्ती की महिलाओं का कहना है कि बदबू के कारण कई बार छोटे बच्चों की तबियत ख़राब हो जाती है. पिछले दिनों हुई बारिश ने तो बस्ती की स्थिति पहले ही बिगाड़ दी थी और इन दिनों हो रही कड़क धुप से तो हालत और भी कष्टदायक हो गया है. घर में बना खाना भी इन दिनों बदबू के मारे खाया नही जा रहा है. पूरे मोहल्ले में गंदगी से लतपथ सुअर घूमते रहते हैं, जिसके कारण आजकल लोग घरो में ही दुबके रह रहे है.
देखा जाए तो शहर में दर्जनों दलित बस्तियां है पर सबका हाल लगभग एक ही जैसा है. भारतीय राजनीति का केंद्र रहा दलित समाज भले ही अपने जनप्रतिनिधियों को कई बार सत्ता के शीर्ष पर पहुँचाने में अहम् भूमिका निभा चूका है पर समाज और सरकार की उपेक्षाओं के शिकार इस बस्ती के लोग आज भी बदहाल जिंदगी जीने को विवश हैं.
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