(सुरभित दत्त)
छठ पूजा की परंपरा दूर देश रहने वाले लोगों को उनके घर की ओर खींचती है. सालों भर अपने घर से दूर रह जीवन यापन करने वाले लोग छठ पर्व के अवसर पर घर जरूर आते है. छठ पूजा अपनी संस्कृति और परम्पराओं से परिचय कराती है. नई पीढ़ी को परंपरा से अवगत कराती है.
छठ पर्व पर रिश्तों को जोड़ने का एक मौका होता है जब घर का हर सदस्य, पड़ोसी सभी द्वेष मिटा कर एक साथ घाट पर पूजा करने पहुंचते है और एक दूसरे की मदद भी करते है. दूर-देश और विदेश में रहने वाले लोग भी अपने गांव देहात तक पहुंचते है और आस्था के महापर्व छठ में सम्मिलित होते है. कई महीनों से छुट्टी मिलने का इंतज़ार कर रहे लोग छुट्टी मिलते ही अपनी मिटटी से जुड़े इस महान पर्व में शामिल होने पहुंचते है.
छठ पूजा के चार दिनों तक चलने वाले अनुष्ठान की शुरुआत नहाय-खाय से होती है. जिसके पूर्व लोग तैयारियों में जुटे जाते है.
आम हो या खास सभी छठपूजा में घर पहुंच कर चार दिवसीय इस अनुष्ठान में सम्मिलित होना चाहते है. शहर से लेकर गांव तक पूजा की रौनक देखते ही बनती है. बाज़ारों में सजे फल के दुकानों से लेकर सुप और दउरा तक. संध्या अर्घ्य और फिर प्रातःकाल में भगवान भास्कर को अर्घ्य समर्पित किया जाता है. तब जाकर यह पर्व संपन्न होता है.
बदलते दौर में छठ पूजा ने भी व्यापक रूप ले लिया है. गांव और शहर के नदी, पोखर के घाटों पर होने वाला छठ पूजा अब महानगरों तक पहुंच चुका है. वैसे लोग जो छठ पूजा में घर नही आ सकते वे जहां है वही पूजा कर रहे है. छठ पूजा की महिमा को जानने के बाद अन्य राज्यों के लोग भी छठ पूजा करने लगे है. दिल्ली हो या अमेरिका का टेक्सास हर जगह बिहार के लोग है और वे सभी छठ के महत्व को समझते हुए पूजा करने में व्यस्त होते है.
आधुनिक दौर में छठ पर्व की महत्ता विधमान है. आज भी लोग छठ पूजा को सभी त्योहारों से उपर मानते है. इस पूजा में साक्षात भगवान् भास्कर की पूजा की जाती है. नदियों घाटों पर अर्घ्य देने के लिए शाम और फिर सुबह में लोग पहुंचते है. इसे लेकर साफ़ सफाई का भी पूरा ध्यान रखा जाता है. सभी लोग साफ़ सफाई में मदद करते है, चाहे वह किसी भी धर्म के हो.
छठ पूजा अपनी संस्कृति से जोड़े रखने और उसका महत्त्व बताने का एक महान पर्व है. तो आइये हम सब भी जुड़े अपनी संस्कृति से और छठ के इस महान पर्व में शामिल हो.
||जय छठी मैया||