दीपावली: गोबर के दीयों ने खोले समृद्धि के द्वार

दीपावली: गोबर के दीयों ने खोले समृद्धि के द्वार

बलिया, 31 अक्टूबर (हि.स.)। हर किसी के जीवन में संघर्ष की एक अलग कहानी होती है। बलिया के हनुमानगंज ब्लाक के बहादुर में महिलाओं के जीवन की कहानी भले ही छोटी है, लेकिन वह मिलकर काम करते हुए स्वयं की गरीबी दूर करने की राह पर चल पड़ी हैं। उन्होंने गरीबी दूर करने को स्वदेशी को हथियार बनाया है। इस दीपावली पर उनके बनाए गोबर के दीयों को खूब खरीदार मिल रहे हैं।

मां गायत्री स्वयं सहायता समूह के जरिए वह गाय के गोबर से दीपक बना रहीं हैं। दीयों की पांच क्वालिटी है। इसमें घी की बाती और मोमबत्ती वाला दीया विशेष आकर्षण का केंद्र है। हालांकि ये महिलाएं सामान्य दीये भी बना रहीं हैं। समूह में 12 महिला सदस्य हैं। सभी मिलकर काम कर रहीं हैं। इससे उनकी मासिक आय एक साल में 25 हजार से बढ़कर अब 50 हजार तक पहुंच गई है। इस दीपावली में उनके द्वारा निर्मित दीये की मांग भी बढ़ी है। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने इस बार पांच हजार दीये बनाए हैं। अच्छी बात यह है कि सरकारी प्रयास से बलिया महोत्सव के अवसर पर पुलिस लाइन में 28 अक्टूबर से चार दिन के लिए स्पेशल दुकान लग चुकी है, जहां शहर के लोग उनसे दीपक की खरीदारी करने आ भी रहे हैं।

मशीन से तेजी से होता है दीयों का निर्माण

स्वयं सहायता समूह की महिलाएं दीयों के निर्माण के लिए प्रतिदिन काम नहीं करती हैं। वह सप्ताह में केवल एक दिन रविवार को तीन घंटे काम करती हैं। दीये तैयार करने के लिए ब्लाक मुख्यालय से महिलाओं ने 22500 रुपये में एक मशीन भी खरीदा है। मशीन से दीये का निर्माण तेजी से होने लगा है। महिलाएं गाय का गोबर मशीन में डालती जातीं हैं और मशीन से डिजाइन वाला दीया निकलने लगता है। डिजाइन होकर दीये निकलने के बाद महिलाएं उसकी हाथ से रंगाई करतीं हैं। दीये पांच डिजाइन में निकलते हैं। इसमें सबसे बेहतर घी व मोमबत्ती वाला दीपक होता है। इस दीये को केवल जलाना रहता है। सामान्य दीये में अलग से दीपक डालकर जलाना पड़ता है। घी और मोमबत्ती वाले दीये को ठंडे स्थान पर रखा जाता है ताकि गर्मी से उसमें लगी बाती पिघले नहीं।

स्थायी दुकान मिले तो बात बने

स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष शारदा शर्मा बताती हैं कि रोजगार को खड़ा करने के लिए एनआरएलएम के प्रयास से एक लाख रुपये लिया ऋण लिया है। उससे दीये बनाने वाले मशीन की खरीदारी की। रंग और अन्य संसाधन पर भी कुछ धनराशि खर्च हुई। जिला प्रशासन से मांग की जा रही है कि शहर में कहीं स्थायी दुकान की व्यवस्था करा दिया जाए ताकि मां गायत्री दीपक की अलग पहचान बने। दुकान मिल जाने पर उत्पाद की बिक्री और बढ़ जाएगी।

बढ़ गई दीये की मांग

मां गायत्री स्वयं सहायता समूह बहादुरपुर की अध्यक्ष शारदा शर्मा ने कहा कि स्वयं सहायता समूह का गठन करने के लिए जब गांव की महिलाओं से बात की तो पहले वह तैयार नहीं हो रहीं थीं, लेकिन जब इसका फायदा बताया तो 11 महिलाएं साथ आ गईं। दो साल तक उत्पाद बिक्री करने में कुछ परेशानी हुई, लेकिन अब इस दीये की मांग बढ़ गई है। पुलिस लाइन में 28 अक्टूबर से चार दिन के लिए दीये की बिक्री के लिए दुकान भी स्थापित हो चुकी है।

मुनाफा में होती है बराबर की हिस्सेदारी

मां गायत्री स्वयं सहायता समूह बहादुरपुर की कोषाध्यक्ष संजू शर्मा ने कहा कि स्वयं सहायता समूह की सभी महिलाएं मिलकर काम करतीं हैं। कोई भेदभाव नहीं है। बिक्री में मुनाफा होने पर बराबर की हिस्सेदारी लगती है। सप्ताह में रविवार का दिन काम करने के लिए रखा गया है। इससे सभी आपस में मिल भी लेती हैं और काम भी आसानी से हो जाता है। दीपावली में अच्छी बिक्री की उम्मीद है।

दीये का दाम

-तीन रुपये सामान्य दीया।
-पांच रुपये कलर दीया।
-10 रुपये मोमबत्ती वाला दीया।
-15 रुपये घी की बाती वाला दीया।

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