हिन्दू धर्म में पितृ ऋण सबसे बड़ा ऋण माना गया है. शास्त्रों में पितृ ऋण से मुक्ति के लिए श्राद्ध कर्म का वर्णन किया गया है. आश्विन कृष्णपक्ष प्रथम से अश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के काल को पितृपक्ष कहा जाता है. इस दौरान लोग पितरों की तृप्ति के लिए श्रद्धा से तर्पण या पिंडदान करते है.
शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध करने से व्यक्ति को अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. जिससे घर में सुख शांति और समृद्धि बनी रहती है.
यमराज हर साल पितृ पक्ष या श्राद्ध में सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं, जिससे वो अपने लोगों के पास जाकर तर्पण यानि भोजन, जल आदि ग्रहण कर सकें. शास्त्रों के अनुसार पितर ही अपने कुल की रक्षा करते हैं पितृपक्ष या श्राद्ध को तीन पीढ़ियों तक करने का विधान बताया गया है.
पितृपक्ष 7 सितंबर से आरंभ होकर 20 सितंबर तक चलेगा.