ज्येष्ठ का दशहरा यानि गंगा दशहरा कब है, जाने

ज्येष्ठ का दशहरा यानि गंगा दशहरा कब है, जाने

बिहार में ज्येष्ठ का दशहरा यानि गंगा दशहरा का त्योहार बहुत ही विधि – विधान से किया जाता है।  सौभाग्यवती महिलाए लंबी सौभाग्य के लिए यथा घर में सुख शांति के लिए गंगा दशहरा का पूजन करती है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास शुक्लपक्ष की दशमी तिथि को गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थी,  इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। गंगा दशहरा को माता गंगा को पूजन किया जाता है। यह त्योहार भारत में मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहार में से एक है। इस दिन को गंगा अवतरण के दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन माता गंगा पृथ्वी पर आने के कारण यह शुद्ध हो गई और इनका भब्य धारा का प्रभाव हुआ।

कहा जाता है इस दिन गंगा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन दान -पुण्य करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है तथा जीवन में सुख -शांति बना रहता है। गंगा को सिर्फ नदी नहीं बल्कि हिन्दू धर्म में गंगा को माता का दर्जा दिया गया है। यह दिन को बहुत ही महतवपूर्ण माना गया है। गंगा दशहरा का त्योहार बिहार के आलावा, बंगाल, उतरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान में मनाया जाता है।

गंगा दशहरा कब है जाने क्या है मुहूर्त 
दशमी तिथि का प्रारंभ 29 मई 2023 सुबह 11:49 से
दशमी तिथि का समाप्ति 30 मई 2023 दोपहर 01:07 तक
हस्त नक्षत्र का प्रारंभ 30 मई 2023 को 04:29 सुबह से
हस्त नक्षत्र का समाप्ति 31 मई 2023 को 6:00 सुबह तक

पूजन विधि
गंगा दशहरा का पूजन विधि इस प्रकार है।
इस दिन गंगा में स्नान करने का महत्व है । नये वस्त्र धारण करे।  पूजन सामग्री में फूल, दीपक, धूप, नैवेद्य गंगा माता को चढ़कर पूजन करे साथ ही गंगा माता को अर्ध्य दे बाद में आरती करे ।

गंगा दशहरा के दिन ज्योतिषीय उपाय
गंगाजल में स्नान करने से मन पवित्र हो जाता है तथा आत्मा शुद्ध हो जाती है, सभी पाप नष्ट हो जाते है।

गंगा में स्नान करने के बाद भगवान शिव का पूजन करे,  इनके पूजन से चन्द्रमा का दोष दूर हो जाते है।

गंगा में स्नान करने के बाद अपने घर के मुख्य द्वार स्वस्तिक बनाकर उसका पूजन करे।

इस दिन गंगा में स्नान करने के बाद मृत पूर्वजो के लिए पितृ तर्पण करे पितृदोष से राहत मिलेगा .

गंगा का पृथ्वी पर अवतरण की कथा

कथा के अनुसार कई वर्षो की कठोर तपस्या के बाद भागीरथ ने माता गंगा को प्रसन्न करने में सफल हुए थे।  माता गंगा ने खुश होकर उनसे कहा आपके इच्छा के अनुसार मै पृथ्वी पर आने को तैयार हूं लेकिन मेरे शक्ति ज्वार और प्रभाव को रोकने वाला कोई है, अगर ऐसा हुआ तो मेरा जल प्रभाव से पुरे ग्रह को मिटा सकता है। पुरे पाताल लोक को खत्म कर सकता है । इसके बाद भागीरथ ने गंगा माँ से विनती किये तथा इसका समाधान निकलने के लिए कहा तब माता गंगा ने उतर दिया केवल भगवान शिव गंगा को अपने सिर पर धारण करने के लिए तैयार हो जाते है तब मै पृथ्वी पर आउगी माता गंगा की बात सुनकर भागीरथ ने भगवान शिव की आराधना में लीन हो गए।  इनके तपस्या के खुश होकर भगवान शिव जी गंगा को अपनी जटाओ में धारण किया। ज्येष्ठ के दशहरा के दिन गंगा माता पृथ्वी की ओर जब प्रवाहित हुई तब भगवान शिव अपने बाल को खोलकर गंगा माता को अपनी जटाओ में बंध लिया था।  इसके बाद भगवान शिव ने अपने बाल के एक जटा ली और वही से गंगा माता की अवतरण हुआ।  इस जगह को गंगोत्री के नाम से जाना जाता है।

 

 

 

ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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