Chhapra (कबीर की रिपोर्ट): छपरा शहर हमेशा से हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक रहा है. यहां हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही कौम मिलजुल कर सदियों से रहते आये है. वही शहर के दहियावां मुहल्ले के रहने वाला एक ऐसा परिवार जो कई पीढ़ियों से हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना हुआ है. जितने प्यार से मुस्लिम भी उससे ताजिया बनवाते है उतने ही प्यार हिन्दू भाई दुर्गा पूजा में बनने वाले माँ दुर्गा की मूर्ति बनवाते है. इस परिवार के लिए सबसे ज्यादा खुशी तब हो जाती जब ये दोनों त्योहार किसी वर्ष एक साथ पड़ जाते है.
खास बात तो यह है कि ये परिवार इन दोनों त्योहार में किये गए कार्यों का कोई पैसा तक नही लेता और पूरी शिद्दत के साथ काम शुरू करते है और उसको अंजाम तक पहुंचाते है. जबकि घर की खर्ची किराना दुकान से चलती है.
वर्षो से ताजिया बनवाने वाले अब्दुल रहीम बताते है कि हम लोग पटेल परिवार से ही ताजिया बनवाते है. किसी और से हम लोगों ने बनवाया ही नही. इनसे पहले इनके पिता जी ये काम किया करते थे और अब बेटों ने काम को संभाल रखा है. अब्दुल रहीम ने कहा कि हम सब मिलकर जितनी खुशी के साथ ईद मनाते है उतनी ही खुशी के साथ दीवाली और होली भी मनाते है. किसी तरह का भेद भाव नही है.
प्रभात कुमार पटेल और उनका परिवार इस कार्य में पीढ़ियों से लगा हुआ है. इन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिशाल पेश की है. प्रभात बताते है कि यह काम मेरे दादाजी-पिताजी वर्षो से करते आ रहे है और हम भी कर रहे है. बहुत अच्छा लगता है. घर के पास में ही माँ दुर्गा स्थापित की जा रही है. वहां भी सजाने सवारने का कार्य करते है और सारण के कई प्रखण्डों का सीपल और ताजिया बनाने का काम करते है. प्रभात बताते है हम सब को मिलकर रहना चाहिए यहां से जाने के बाद अमीर हो या गरीब अपने कर्म को छोड़ के जाता है.
आपको हिन्दू-मुस्लिम एकता की कई कहानी और क़िस्से सुनने को मिलेंगे लेकिन ये जीता जागता उदाहरण है. प्रभात कुमार पटेल खुद तो तन मन से कार्य कर रहे है और समाज को एक नायाब संदेश भी दे रहे है.
मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी है हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा.