छपरा: शहर से सटे या यू कहें कि बीचों बीच शिल्पी पोखरा की अस्मिता धीरें-धीरें समाप्त हो रही हैं. जिस तालाब में पानी दिखता था आज वह सूख चुका हैं. पोखरा के मुख्य द्वार पर नगर परिषद् ने बड़ा सा बोर्ड लगाकर यह बताया था कि यह पोखड़ नगर परिषद् के अधीन है.
पोखरा के चारों तरफ दुकानें भी बनी तो उम्मीद जगी की अब इस पोखरा का कायाकल्प होगा. शहर के बीचों बीच एक सुन्दर पोखरा के रूप में यह विकसित होगा जहाँ लोग अपनी थकान मिटा सकें. लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत ना पोखरा का कायाकल्प हुआ और ना ही इसके विकास को लेकर कभी नगर परिषद् सजग हुआ.
साफ़ सफाई करने की बजाय नगर परिषद् ने इसमें पुरें शहर का कचड़ा लाकर भरने का प्रयास शुरू कर दिया. आलम यह है की आज इस शिल्पी पोखरा का अस्तित्व समाप्ति के काग़ार पर हैं. रात के अँधेरे में नगर परिषद् द्वारा शहर का कचड़ा फेका जाने लगा. फेकें जा रहे कचड़ो से निकलने वाली दुर्गन्ध ने आसपास के लोगों का जीना मुस्किल कर दिया था. लोगों ने इस व्यवस्था के ख़िलाफ़ तरकीब अपने और लोगों से आर्थिक सहयोग लेकर बना दिया मंदिर और उसमे बैठा दिया हनुमान जी की प्रतिमा.
कल तक जहाँ लोग नगर परिषद् के कारगुजारियों के चलते नाक पर रुमाल रख कर जाते थे आज वह जगह अगरबत्ती की खुशबू से खुशबूदार हैं. सुबह शाम दीये जलते है. पूजा के दौरान लोगों को सुकून भी मिलता हैं.
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