एमडीएम योजना: सरकार ने व्यवस्था बदली लेकिन स्थिति नही सुधरी, बच्चों की थाली से गायब हो गए फल, अंडे और सब्जियों में मिलता है आलू सूप
Chhapra: सरकारी स्कूलों में संचालित एमडीएम यानी पीएम पोषण योजना को लेकर सरकार ने जितनी भी व्यवस्थाओं में बदलाव किया लेकिन स्थिति में सुधार होने का नाम नहीं है. आलम यह है कि सरकार अपने नियमों से डाल डाल चल रही है वही शिक्षक इन नियमों से कही आगे पात पात चल रहे है.
कोरोना काल के कारण करीब 2 वर्षो बाद विद्यालयों में पका पकाया भोजन छात्रों को मिलना प्रारंभ हुआ. सरकार ने इसके लिए नई व्यवस्था लागू की जिसमे वेंडर द्वारा विद्यालय को एमडीएम का सामान उपलब्ध कराने एवं विभाग द्वारा सीधे वेंडर के खाते में पैसा देने का नियम बना. इसके लिए दुकानदार को GST निबंधित बिल वाउचर देना था. लेकिन बीच में ही अब बिना GST सामान्य वाउचर पर ही वेंडर बना दिए गए.
जिले के लगभग सभी विद्यालय द्वारा अपना अपना वेंडर बनाया गया है. जिन्हे स्कूलों को सामान देना है. लेकिन 2 माह में ही इसमें मिली भगत हो गई. कलतक वेंडर द्वारा सामान ना देने की दुहाई देने वाले और एमडीएम योजना संचालन की चिंता करने वाले शिक्षकों के चेहरों पर सिकन समाप्त हो गया है. प्रधान शिक्षक किसी दुकान से खरीददारी करते है और माह के आखिरी दिन वेंडर से बिल वाउचर लेकर जमा कर देते है.
ना खिचड़ी में दिखती है दाल की मात्रा, ना प्लेट में मिलता है फल और अंडा
जिले के लगभग सभी प्रखंडों में एक दो विद्यालयों को छोड़ नियम मेनू से इतर एमडीएम का खाना बनाया जा रहा है. एमडीएम के तहत पकाए जाने वाले भोजन में छात्रों के अनुरूप ना दाल की मात्रा दी जाती है ना ही तेल और मशाले, बच्चों की थाली से सब्जियां तो अपने आप नदारद है. कुछेक जगह चोखा और सब्जियां मिलती भी है तो उसमे भी भ्रष्टाचार सेंध मार जाता है. सप्ताह में निर्धारित मौसमी फल और शुक्रवार को निर्धारित अंडा तो बच्चों की थाली में अबतक नही दिख पाया है.लेकिन कागजों पर इनका वितरण प्रत्येक सप्ताह के निर्धारित दिनों में जरूर होता है.
वेंडर से मिलीभगत के बाद सिर्फ कागजों पर ही कई स्कूलों में संचालित है एमडीएम
जिले के कई स्कूलों में अब भी बच्चों को पका पकाया भोजन नहीं मिलता है.लेकिन निर्धारित समय पर बिल वाउचर जरूर जमा होता है. बच्चों को एमडीएम ना मिलना, थाली से फल और अंडा का गायब होने का मुख्य कारण है कि अब सामानों की आपूर्ति वेंडर की मिली भगत से प्रधान शिक्षक खुद कर रहे है. माह के आखिरी दिन सिर्फ कागजों पर निर्धारित मात्रा के अनुरूप बिल वाउचर बनाकर अपना अपना हिस्सा बांटकर जिला कार्यालय को जमा कर दिया जाता है. जिससे कि भुगतान हो सकें. कई विद्यालय के शिक्षकों द्वारा अपनी पत्नी, पति, बेटा, बेटी के साथ अन्य संबंधी को ही वेंडर बनाकर पूरा सेटिंग खुद कर ले रहे है. इसके लिए उन्होंने कंपनी, दुकान की प्रक्रिया भी पूरी की है. जिससे की किसी के यहां जाना ना पड़ें.
एमडीएम साधनसेवी और शिक्षा पदाधिकारी पेपर पर ही करते हैं निरीक्षण
स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के साथ बेहतर भोजन मिले इसके लिए कई स्तर पर पदाधिकारियों को लगातार निरीक्षण और जांच का कार्य सौंपा गया है. जिसमे मुख्य रूप से वरीय पदाधिकारियों के साथ स्थानीय स्तर पर एमडीएम साधनसेवी और बीईओ को प्रतिदिन अपने प्रखंड के स्कूलों का निरीक्षण कर बनने वाले भोजन की गुणवता की जांच करनी है. लेकिन प्रखंडों में यह व्यवस्था नदारद है. स्कूलों में ना एमडीएम साधनसेवी जाते है ना बीईओ कागज पर गुणवत्ता की जांच सेवाशुल्क के साथ हो जाती है. जबकि इसके पूर्व एमडीएम साधनसेवी द्वारा स्कूलों में बनने वाले खाने की प्रतिदिन रिपोर्टिग टैब से फोटो लेकर जिला कार्यालय को भेजी जाती थी.
जांच के नाम पर भ्रष्टाचार और शिक्षकों का दोह
स्कूलों में क्या बना कैसे बना, नही बना तो क्यों नही बना, नही बना तो पोर्टल पर उसे बना हुआ रिपोर्ट किया गया. इसकी जांच करने वाला कोई नहीं है. जांच के नाम पर पदाधिकारी शिक्षकों का दोहन करते है.
बहरहाल बच्चे गरीब समुदाय के है सो इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है, जांच के नाम पर पदाधिकारी सुविधाशुल्क के अनुसार रिपोर्ट बनाते है, जबकि जांच के दौरान लाभार्थी यानी स्कूली बच्चों से ही एमडीएम की गुणवत्ता, फल, अंडा, सब्जी, चोखा और खाने में क्या क्या मिलता है इसकी जानकारी लेनी चाहिए. ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में लिप्त इस योजना के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते है लेकिन सुविधा के नाम पर बच्चों की थाली में चावल और हल्दी, मांड और सब्जियों के सूप के अलावा कुछ हासिल नहीं होता.