गोरखपुर: पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा सेवित क्षेत्र पर्यटन एवं ऐतिहासिक विरासत की दृष्टि से बहुत ही समृद्ध है. यात्री प्रधान पूर्वोत्तर रेलवे उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड तथा बिहार की जनता को विश्वसनीय एवं किफायती रेल परिवहन सुविधा उपलब्ध कराकर इस क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है. इस रेलवे के क्षेत्राधिकार में उत्तर प्रदेश के 37, उत्तराखण्ड के 02 तथा बिहार के 03 जिले पड़ते हैं साथ ही पूर्वोत्तर रेलवे पड़ोसी देश नेपाल की परिवहन आवश्यकता की पूर्ति भी करती है.
पूर्वोत्तर रेलवे प्रमुख पर्यटन स्थलों, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक केन्द्रों से गुजरती है जिनमें प्रयागराज, वाराणसी, सारनाथ, कुशीनगर, गोरखपुर, मगहर, छपिया, लुम्बिनी, श्रावस्ती, बहराइच, अयोध्या, लखनऊ तथा मथुरा आदि प्रमुख हैं. इसके अतिरिक्त यह प्रकृति के नैसर्गिक विविधताओं से युक्त पर्वतीय क्षेत्र जैसे-नैनीताल, कौसानी, अल्मोड़ा, रानीखेत के लोकप्रिय रमणीय पर्वतीय स्थलों तथा जिम कार्बेट एवं दुधवा राष्ट्रीय उद्यान जाने वाले पर्यटकों को रेल यात्रा सुविधा उपलब्ध कराती है.
पूर्वोत्तर रेलवे अपनी आधारभूत संरचना में निरन्तर विस्तार के साथ ही यात्री सुविधाओं में वृद्धि में निरन्तर बेहतर कार्य करते हुए विकास के पथ पर अग्रसर है. पूर्वोत्तर रेलवे पर अधिकतर क्षेत्र में विद्युतीकरण का कार्य हो जाने से इन पर्यटन स्थलों पर बड़ी सुगमता से पहुँचा जा सकता है.
पूर्वोत्तर रेलवे द्वारा सेवित इन पर्यटन स्थलों में से अनेक महात्मा बुद्ध से सम्बन्धित हैं. पूर्वोत्तर रेलवे क्षेत्र में स्थित महात्मा बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों का विवरण निम्नवत है.
गोण्डा-बढ़नी-गोरखपुर रेल खण्ड पर स्थित सिद्धार्थनगर रेलवे स्टेशन से लगभग 35 किमी. दूरी पर स्थित लुम्बिनी में राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम) का जन्म हुआ था. सम्राट अशोक ने 249 ई. पूर्व में लुम्बिनी आकर 36 फुट ऊँचा एक स्तम्भ निर्मित कराया था, जिसमें लिखा है कि यहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था. अशोक स्तम्भ, गौतम बुद्ध की माँ का महादेवी मन्दिर, एक पुराने मठ के अवशेष तथा कुछ नये स्तूप यहाँ पर देखने योग्य है. सिद्धार्थनगर शाक्य वंश की प्राचीन राजधानी कपिलवस्तु (पिपरहवा) पहुँचने हेतु रेल का निकटतम स्टेशन भी है.
गोरखपुर रेलवे स्टेशन से 55 किमी. उत्तर-पूर्व में सड़क मार्ग पर कुशीनगर स्थित है. इसी स्थान पर गौतम बुद्ध ने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया था. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृतान्त में लिखा है कि वह स्थान जहाँ भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था, नगर के उत्तर-पूर्व की ओर हिरण्यवटी नदी (छोटी गण्डक) के पास साल वृक्षों के कुंजों में स्थित है. यहाँ विभिन्न बौद्ध बाहुल्य देशों की अपनी-अपनी वास्तुकला में निर्मित बौद्ध मन्दिर है. आधुनिक बर्मीज मन्दिर में भगवान बुद्ध की संगमरमर, कांस्य एवं लकड़ी की खूबसूरत तीन प्रतिमायें हैं. यहाँ एक पुस्तकालय भी है, जिसमें विभिन्न भाषाओं की पुस्तकें उपलब्ध हैं. पूर्वाेत्तर रेलवे के बड़ी लाइन खण्ड पर स्थित गोरखपुर, पडरौना एवं देवरिया सदर निकटतम रेलवे स्टेशन हैं, जहाँ से सड़क मार्ग द्वारा कुशीनगर पहुँचा जा सकता है.
सारनाथ के प्रसिद्ध बौद्ध अवशेष पूर्वाेत्तर रेलवे के सारनाथ रेलवे स्टेशन के निकट है. इसकी पहचान मृगदाव या हिरणपार्क से होती है. वर्षों की तपस्या के बाद गौतम बुद्ध को यहीं पर परम ज्ञान प्राप्त हुआ और वे भगवान बुद्ध कहलाये. उन्होंने यहीं पर अपने पाँच शिष्यों को पहली शिक्षा दी और यहीं से धर्मचक्र प्रवर्तन आरम्भ कराया. सम्राट अशोक ने कई स्तूपों का निर्माण कराया. यहाँ की बहुत सारी इमारतों को आक्रमणकारियों ने भारी नुकसान पहुँचाया, फिर भी सारनाथ में बहुत कुछ दर्शनीय हैं. पुरातात्विक संग्रहालय में भारत सरकार का राष्ट्र चिन्ह अशोक स्तम्भ जो कि खुदाई में मिलने के बाद यहाँ रखा गया है और इसमें अनेक बौद्ध स्थापत्य के नमूने प्रदर्शित किये गये हैं. यहाँ पर चीनी मंदिर, जैन मंदिर तथा तिब्बत मंदिर आदि अन्य दर्शनीय स्थल हैं.
प्राचीन कौशल राज्य की राजधानी श्रावस्ती, गोण्डा-बढ़नी बड़ी लाइन रेल खण्ड पर स्थित बलरामपुर रेलवे स्टेशन से 29 किमी. दूर स्थित है. यह नगर वर्तमान में सहेत-महेत या टॉप्सी-टर्वी टाउन के नाम से जाना जाता है. भगवान बुद्ध ने यहीं पर अपने जीवन के 24 वर्षाकाल व्यतीत किये. सहेठ-महेठ दो अलग-अलग स्थल हैं, जो कि एक दूसरे से 01 किमी. की दूरी पर स्थित हैं। सहेठ का सम्बन्ध जैतवन के अवशेषों से है जबकि महेठ श्रावस्ती के अवशेषों से सम्बद्ध है. महेठ में अंगुलिमाल का विशाल स्तूप तथा सुदत्त का स्तूप दर्शनीय है. श्रावस्ती, बलरामपुर बहराइच सड़क मार्ग पर स्थित है.