युवा कवि सत्येंद्र एवं कवीन्द्र ‘बज़्म-ए-हबीब सम्मान – 2020’ से सम्मानित

युवा कवि सत्येंद्र एवं कवीन्द्र ‘बज़्म-ए-हबीब सम्मान – 2020’ से सम्मानित

Chhapra: साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था “बज़्म-ए-हबीब” ने भोजपुरी भाषा के चहुँमुखी विकास के लिए साहित्यिक सृजन करने वाले कवि एवं साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने की अपनी यात्रा की वर्ष 2020 के कार्यक्रम की शुरुआत की. इसके अंतर्गत छपरा के उभरते हुए दो युवा होनहार कवियों का चयन “बज़्म-ए-हबीब” की समिति द्वारा किया गया था.


एक साहित्यिक गोष्ठी आयोजित कर इसके संस्थापक सचिव मशहूर व मारूफ़ शायर व कवि ऐनुल बरौलवी के द्वारा युवा कवि डाॅ० सत्येंद्र सिताबदियारवी और भोजपुरी व हिन्दी के कवि कवींद्र कुमार को माल्यार्पण कर “बज़्म-ए-हबीब सम्मान- 2020” का अलंकरण पत्र देकर सम्मानित किया गया. इन दोनों कवियों को उपेंद्र कुमार यादव (ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी , सारण) एवं संस्था के सचिव ऐनुल बरौलवी के कर-कमलों से सम्मानित किया गया। शामिल होने वालों मेंं उपेंद्र कुमार यादव, ज़िला अल्पसंख्यक कल्याण पदाधिकारी सारण सह प्रभारी पदाधिकारी (ज़िला उर्दू भाषा कोषांग), ऐनुल बरौलवी, शायर सुहैल अहमद हाशमी, शायर प्रो० शकील अनवर, वसीम रज़ा, विजय बहादुर साह (फ़ौजी) उपस्थित रहे.

सम्मान समारोह के बाद साहित्यिक गोष्ठी में काव्य-पाठ किया गया. जिसकी अध्यक्षता प्रो० शकील अनवर और संचालन शायर सुहैल अहमद हाशमी ने किया. काव्य-पाठ करने वालों में शायर ऐनुल बरौलवी , सुहैल अहमद हाशमी, प्रो० शकील अनवर, कवि डा० सत्येंद्र सिताबदियारवी, कवींद्र कुमार आदि उपस्थित शायर और कवियों ने अपने-अपने एक से बढ़कर एक कलाम पढ़े.

ऐनुल बरौलवी ने कहा –
चहूँ ओर नफरत के बाटे अँधेरा ,
मुहब्बत के दीया जराईं न बाबू।
गजल रोज ‘ऐनुल’ कहाँ ले सुनावस ,
तनिक रंग रउओ जमाईं न बाबू।
सुहैल अहमद हाशमी ने कहा –
तितलियों को हौले से “मुट्ठी” में मैंने भर लिया ।
उंगलियों पर ‘रंग’ उतरे याद तुमको कर लिया ।।


प्रो० शकील अनवर ने पढ़ा –
अपने एहसास-ए-फ़न को लिखता हूँ।
और उसूलों पे मरता मिटता हूँ ।
मुझमें डूबो तो ख़ुद को पा लोगे ,
मैं ग़ज़ल को लहू से लिखता हूँ।
कवि डाॅ० सत्येन्द्र सिताबदियारवी ने कहा –
एक-ना-एक दिन दोसरा के घरे जाहीं के परेला धिया के।
बाप-मतारी के हाँथ छोड़ाके हाँथ धरे के परेला पिया के।
हातना कईला के बादो जदी बर ठिक ना मिले तऽ ,
छाती पऽ पथल राखके समझावहीं के परेला जिया के।
कवींद्र कुमार ने पढ़ा –
प्यार में यूँ दिल को बहलाना ,
मुझको अच्छा लगता है।
क़ातिल नज़रों से मर जाना,
मुझको अच्छा लगता है।

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