पर्यावरण दिवस पर विशेष: पर्यावरण के प्रति जागरुक होने की दिखावा नहीं ठोस समाधान ढूंढने की जरूरत: प्रशान्त सिन्हा

पर्यावरण दिवस पर विशेष: पर्यावरण के प्रति जागरुक होने की दिखावा नहीं ठोस समाधान ढूंढने की जरूरत: प्रशान्त सिन्हा

 5 जून को पूरे विश्व में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। बेशक कुछ वर्षो में लोगों में जागरुकता आई लेकिन मेरा मानना है ज्यादातर लोग पर्यावरण की समस्या का ठोस समाधान ढूंढने के बजाय सिर्फ अपने आप को जागरुक दिखाने की कोशिश करते हैं। पर्यावरण को बचाने के लिए एक दृढ़ संकल्प के साथ समाधान ढूंढने की आवश्यकता है। संकल्प करने के लिए हमारी योजनाओं में पृथ्वी की पर्यावरण को शामिल करना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

पर्यावरण को अपने संकल्पों में शामिल करने से हम हमारे समुदायों, समाज, पृथ्वी और ग्रह को लाभान्वित करते हैं। आज पर्यावरण के बिगड़ने से हमारे जीवन पर असर पड़ा है। इसमें मानव के साथ जीव जंतु, पहाड़, चट्टान, वायु मौसम सभी शामिल हैं। हमारे कार्यों का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है इस पर हमें विचार करना चाहिए। प्रकृति के बारे में कुछ नया सीखें और जानें कि पर्यावरण और खुद को होने वाले नुकसान को को कैसे कम किया जा सकता है। हमें पेड़ पौधों को बचाना एवं पशु पक्षियों और पूरी पृथ्वी का ख्याल रखना चाहिए क्योंकि हमारा भविष्य पर्यावरण ही तय करेगा।

हमें इस बारे में गम्भीरता से सोचना है और जिस जगह हम हैं वहीं से पर्यावरण को प्रदुषित होने से रोकना है। आज के समय यह महत्वपूर्ण हो जाता है जब कोविड ( कोरोना ) ने पूरी दुनिया को हिला दिया है। यह सच है कि कोरोना को बिगड़ते पर्यावरण का इंडिकेटर ही समझना चाहिए क्योंकि शायद आज समय यह भी है कि हम इस बड़ी महामारी को अगर प्रकृति के साथ जोड़कर देखने की कोशिश करेगें तो ही आने वाले समय में इस तरह की घटनाओं को कुछ हद तक रोक पाएंगे।

पानी का संकट आज सबसे बड़ा है। लेकिन अगर हम दृढ़ संकल्प लेते हैं तो हम इससे पार पा सकते हैं। सरकार ने भी इस समस्या के प्रति अपनी गम्भीरता स्पष्ट कर दी है। ऐसे में अब बारी समाज की है। भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 140 लीटर है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक दिन में प्रति व्यक्ति को 200 लीटर पानी उपलब्ध होना चाहिए। देश के 85 – 90 प्रतिशत गांव भूजल से अपनी आपूर्ति करते हैं। पानी का संरक्षण व उसकी बचत दोनों स्तरों पर जल संकट के स्थाई समाधान हेतु जहां तालाबों का पुनर्जीवित होना आवश्यक है वहां अति आवश्यक है कि वर्षा के प्रत्येक बूंद का हम संचयन करें एवं अनुशासित हो कर जल के उपयोग के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए संकल्प लेने की आवश्यकता है।

वायु प्रदुषण खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है। खुली हवा में सांस लेने के लिए वायु प्रदुषण को रोकने के लिए हमें खुद इसके लिए जिम्मेदारी लेकर दूसरों को भी जागरुक करना होगा। बढ़ते वायु प्रदुषण के कारकों में बढ़ते वाहन, आवासीय क्षेत्र व नजदीक में चल रहे उद्योग धंधे, खुले में पड़ी भवन निर्माण सामग्री, मानक के विपरीत चल रहे ईंट भट्टे, खुले में जलाए जा रहे प्लास्टिक – पॉलीथीन व कूड़ा है। प्रदुषण को रोकने के लिए सरकारी विभागों के साथ मिलजुलकर काम करने का संकल्प लेना ज़रुरी है। वायु की खराब गुणवत्ता का रिश्ता दिल की बीमारी, फेफड़े का कैंसर, दमा और सांस रोगों से है।

पॉलीथीन और एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के अंधाधुंध प्रयोग तीव्रता से पर्यावरण को नष्ट कर रहा है। यह हमारी भूमि पर कब्जा कर लिया है। गांव, कस्बों, और शहरों की इस्तेमाल किए गए सामानों से पटी पड़ी हैं जो मिट्टी में नही घुलता है और धीरे धीरे पानी में चला जाता है और कुछ दिनों के बाद विभिन्न तरीकों से यह समुद्र में चला जाता है जिससे समुद्री जीव जंतुओं को नुकसान पहुंच रहा है। पक्षियों से लेकर मछलियों और अन्य समुद्री जीवों तक हर साल प्लास्टिक से लाखों जानवर मारे जाते हैं। ज्ञात है कि लुफ्त प्रायः प्रजातियां सहित और लगभग हर प्रजातियों सहित लगभग 700 प्रजातियां प्लास्टिक से प्रभावित है। हमें इस नए साल में यह संकल्प लेना होगा कि एकल प्रयोग प्लास्टिक की इस्तेमाल न खुद करेगें और दूसरों को ऐसा करने से रोकेंगे।

जैव विविधता प्रत्येक राष्ट्र की विरासत के स्वाभाविक रुप से महत्तवपूर्ण रुप से महत्तवपूर्ण पहलू के रुप में और एक उत्पादक, स्थायी संसाधन के रुप मे देखी जानी चाहिए, जिस पर हम सभी अपने वर्तमान और भविष्य के कल्याण के लिए निर्भर है। जैव विविधता की रक्षा के लिए तत्काल कारवाई करने की आवश्यकता है। जैव विविधता से आशय जीवधारियों ( पादप जीवों ) की विविधिता से है जो दुनिया भर में हर क्षेत्र, देश और महाद्वीप पर होती है।
हमारे देश में पेड़ों की संख्या कम है।

इसके पीछे एक बड़ा कारण यह है कि लोगों के पास पौधारोपण करने का समय नहीं है। जब प्रदूषण जी का जंजाल बना हुआ है और शुद्ध हवा के लिए लोग तरस रहे हैं तो हर एक व्यक्ति को चाहिए कि वे वृक्षारोपण को बढ़ावा दे ताकि भावी पीढ़ी को शुद्ध हवा नसीब हो सके। पेड़ों के तनों से कार्बन डायऑक्साइड सोखने की अदुभूत क्षमता है। हरियाली के अभाव मे यही कार्बन उत्सर्जन वायु मंडल में जाकर मौसम को गड़बड़ा रहा है। हम संकल्प लें कि धरती की हरियाली को कम नहीं होने देंगे।

लेखक प्रशांत सिन्हा पर्यावरणविद हैं

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