अंतराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस: विश्व जैव विविधता के नुकसान को प्राथमिकता दे – प्रशान्त सिन्हा

अंतराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस: विश्व जैव विविधता के नुकसान को प्राथमिकता दे – प्रशान्त सिन्हा

(प्रशांत सिन्हा)

संयुक्त राष्ट्र द्वारा शुरू किया गया हर साल 22 मई को जैव विविधता दिवस मनाने का उद्देश्य पृथ्वी पर मौजूद जंतुओं और पौधों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए लोगों में जागरूक और समझ को बढ़ाना है। विश्व वन्यजीव दिवस 2023 की थीम है ” वन्यजीव संरक्षण के लिए साझेदारी है “। जैव विविधता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिकी कीट विज्ञानी इ.ओ विल्सन द्वारा 1986 में ‘अमेरिकन फोरम ऑन बायोलोजिकल डाइवर्सिटी’ में प्रस्तुत रिपोर्ट में किया गया । यह शब्द दो शब्दों अर्थात् ‘और का समूह है जो हिन्दी में भी’ ‘जैव’ तथा ‘विविधता’ द्वारा व्यक्त किया जाता है, जिसका साधारण अर्थ जैव जगत में व्याप्ति विविधता से है ।

जैव विविधता से आशय जीवधारियों ( पादप जीवों ) की विविधिता से है जो दुनिया भर में हर क्षेत्र, देश और महाद्वीप पर होती है। भारत में कुछ जीव जंतुओं की बात करें तो जैव विविधता पर दिसम्बर 2018 में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ( सीबीडी ) में पेश की गई। छठी राष्ट्रीय रिर्पोट से पता चला था कि ” अंतराष्ट्रीय रेड लिस्ट ” की गंभीर रुप से लुप्तप्रायः और संकटग्रस्त श्रेणियों में भारतीय जीव प्रजातियों की सूची वर्षो से बढ़ रही है।

विश्व वन्यजीव कोष की लीविंग प्लेनेट रिर्पोट 2022 में खुलासा हुआ है कि दुनिया भर में पिछले 50 वषों में वन्य जीवों की आबादी 69 फीसदी कम हुई है। इनमे स्तनधारी, पक्षी, उभयचर, सरीसृप, मछलियां आदि शामिल हैं। हर दो साल में प्रकाशित होने वाली इस रिर्पोट के मुताबिक वैसे तो पुरी दुनिया में वन्य जीवों की आबादी तेजी से घट रही है लेकिन 1970 के बाद से लैटिन अमेरिका तथा करेबियाई क्षेत्रों में वन्य जीव आबादी में करीब 49 फीसदी तक की गिरावट आई है जबकि अफ्रीका में 66 फीसदी और एशिया में 55 फीसदी गिरावट हुई है। मछली पकड़ने में 18 गुणा वृद्धि के कारण मछलियों की संख्या में कमी हुई है जबकि ताजा पानी में रहने वाले प्रजातियों में सर्वाधिक 83 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है जो किसी भी प्रजाति की समूह की तुलना में सबसे बड़ी गिरावट है। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर ( डबल्यू डबल्यू एफ एन ) की रिर्पोट से साफ है कि धरती पर मौजूद प्रजातियों की तादाद में दस में से सात का आस्तित्व समाप्त हो चूका है।

भारत की हालत वैश्विक स्थिति से भिन्न नहीं है। यहां भी 12 फीसदी से अधिक जंगली स्तनधारियों, 3 फीसदी पक्षी प्रजातियों और 19 उभयचरों की प्रजातियों पर गंभीर खतरा है। एक अनुमान के अनुसार करीब तीस करोड़ प्रजातियां हो सकती है जिसमे 14 लाख 35 हजार 662 प्रजातियों की पहचान हुईं है। उनमें 7 लाख 51 हजार कीट, 2 लाख 81 हजार जंतु, 68 हजार कवक, 26 हजार शैवाल, 4 हजार 800 जीवाणु तथा एक हजार विषाणु शमिल है। इसके अलावा 343 मछलियां 50 जलथलचारी,170 सरीसृप , 1355 अकशेरू , 1037 पक्षियों और 497 स्तनपायी की प्रजातियां भी हैं। हर साल परितंत्रों के क्षण के कारण 27 हजार प्रजातियां लुप्त हो रही है। इस लुप्त होती प्रजातियों को रोकने के लिए गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है। अन्यथा परिणाम भयंकर होंगे। एक रिर्पोट में बताया गया है कि वनों की कटाई, सभी प्रकार के प्रदूषण, औद्धोगीकरण, शहरीकरण जलवायु संकट तथा विभिन्न बिमारियां इनका प्रमुख कारण हैं। डबल्यू डबल्यू एफ के महानिदेशक मार्को लैवर्टनी के अनुसार हम मानव प्रेरित जलवायु संकट व जैव विविधता के नुकसान की दोहरी आपात स्थिति की सामना कर रहे है जो वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए खतरा साबित हो सकती है।

जैव विविधता प्रत्येक राष्ट्र की विरासत के स्वाभाविक रुप से महत्तवपूर्ण रुप से महत्तवपूर्ण पहलू के रुप में और एक उत्पादक, स्थायी संसाधन के रुप मे देखी जानी चाहिए, जिस पर हम सभी अपने वर्तमान और भविष्य के कल्याण के लिए निर्भर है। विकासशील और विकसित दोनों देशों में जैव विविधता की रक्षा के लिए तत्काल कारवाई करने की आवश्यकता है। जैव विविधता पर अनुसंधान की निरंतर आवश्यकता है जो हमारे ज्ञान को बढ़ाती है, हमारी प्रबन्धन क्षमताओं में सुधार करती है और लोगों के साथ रहने के नए तरीकों के विकास की ओर ले जाती है।

कुल मिलाकर, मानव कल्याण के लिए जैव विविधता के कई योगदान अधिक स्पष्ट होते जा रहे हैं। हम अपने द्वारा खाए जाने वाले भोजन, अपने कपड़े और निर्माण सामग्री को ‘जैव विविधता’ से जोड़ते हैं। यह एक महत्वपूर्ण संसाधन है जिसे निरंतर प्रबंधित करने और सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है, ताकि बदले में यह हमारी और ग्रह की रक्षा करे।

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