मध्यकालीन मिथिला के इतिहास के गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठाता है, रागतरंगिणी: डॉ झा

मध्यकालीन मिथिला के इतिहास के गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठाता है, रागतरंगिणी: डॉ झा

Darbhanga: म. अ. रमेश्वरलता संस्कृत महाविद्यालय, दरभंगा के सभागार में पोथीघर फाउण्डेशन और म. अ. रमेश्वरलता संस्कृत महाविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में पोथीघर फाउण्डेशन द्वारा आरंभ किए गए द्वादश व्याख्यानमाला का ‘रागतरंगिणी: इतिहासक स्रोत’ विषयक षष्ठम व्याख्यान वरीय इतिहासकार डॉ. शंकरदेव झा, के द्वारा दिया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरीय इतिहासकार डॉ. अवनींद्र कुमार झा ने की।

मैथिल परंपरा अनुसार डॉ प्रमोद कुमार मिश्र के द्वारा वक्ता को और डॉ सुशांत कुमार के द्वारा अध्यक्ष को सम्मानित किया गया।

व्याख्यान को संबोधित करते हुए डॉ. झा ने कल्हण की राजतरंगिणी एवं लोचन के रागतरंगिणी में मूलभूत अन्तर स्पष्ट करते हुए कहा कि- “रागतरंगिणी मध्यकालीन मिथिला के इतिहास के गूढ़ रहस्यों से पर्दा उठाता है। रागतरंगिणी यद्यपि संगीतशास्त्रीय ग्रंथ है लेकिन प्रकारांतर से यह मध्यकालीन मिथिला की राजनीतिक स्थिति, उस कालखंड के प्रशंसकों की कलाप्रियता,आपसी प्रतिस्पर्धा समेत राजनीतिक शह-मात पर भी प्रकाश डालता है। ओइनिवार राजवंश के पतन के बाद मुगल वंश द्वारा नियुक्त खंडवला वंश की चौधराई के समय किस प्रकार हिन्दू सत्ता की सुरक्षा के लिए और खंडवला वंश के प्रतिरोध में मिथिला, नेपाल उपत्यका और कूच बिहार ने एक गठजोड़ बनाया था इसकी झलक भी प्रकारांतर से रागतरंगिणी में संकलित गीतों के चयन से मिल जाती है। लोचन नरपति ठाकुर के आश्रित थे। इसका प्रथम संस्करण 1935, द्वितीय संस्करण 1966 एवं तृतीय संस्करण 1981 ई० में प्रकाशित हुआ। इसका लेखन हिन्दुस्तानी संगीत परंपरा के आधार पर हुआ था। इससे मिथिला के कला, राजनीति, साहित्य आदि की विविधताओं की विस्तृत जानकारी मिलती है।”

प्रश्नोत्तरी में प्रकाश कुमार, नन्द कुमार, सुमित कुमार आदि ने वक्ता महोदय से अपने प्रश्नों का समुचित उत्तर प्राप्त किया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. झा ने कहा कि- “जिस प्रकार भारतीय परिपेक्ष्य में ऐतिहासिक अध्ययन करने हेतु अष्टाध्यायी, महाभाष्य, कामसूत्र एवं अर्थशास्त्र का अध्ययन करना अनिवार्य है, उसी प्रकार मध्यकालीन मिथिला के विविधताओं को समझने हेतु रागतरंगिणी का अध्ययन करना है। वर्तमान समय में मैथिली साहित्य लेखन में विविध विषयोपयोगिताओं का अभाव स्पष्ट है। इस प्रकार के व्याख्यान नियमित रूप से होती रहनी चाहिए, जिसके लिए पोथीघर फाउण्डेशन के द्वारा उठाया गया यह कदम अनुकरणीय है।”

पोथीघर फाउण्डेशन का नारा “लाउ व्यवहार मे, पोथी उपहार मे” के तहत पोथीघर फाउण्डेशन की अध्यक्षा श्रीमती गुड़िया झा के द्वारा वक्ता और नितेश कुमार झा के द्वारा अध्यक्ष को पोथी उपहार स्वरूप प्रदान किया गया।

कार्यक्रम का संचालन आशुतोष मिश्र ने और धन्यवाद ज्ञापन पोथीघर फाउण्डेशन के सचिव आनंद मोहन झा ने किया।

इस मौके पर डॉ. सुशांत कुमार, डॉ. मैथिली कुमारी, प्रमोद कुमार मिश्र, अखिलेश झा, राजीव चौधरी, राहुल राय, प्रकाश कुमार, अभिमन्यु कुमार, पुरुषोत्तम वत्स, प्रियंका कुमारी, गुंजन कुमारी, नन्द कुमार, सुमित कुमार झा सहित कई प्रोफेसर, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं मौजूद थे।

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