भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की गहरी समझ: प्रो. अरुण कुमार भगत

भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की गहरी समझ: प्रो. अरुण कुमार भगत

मोतिहारी। पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में संस्कार भारती बिहार द्वारा ‘भारतीय संस्कृति और साहित्य में पर्यावरण चेतना’ विषयक ई-परिचर्चा का आयोजन संस्कार भारती बिहार के फेसबुक पृष्ठ से लाइव किया गया। विषय प्रवर्तन प्रो. अरुण कुमार भगत, सदस्य, बिहार लोक सेवा आयोग और अध्यक्षता विवेकानंद पाई, राष्ट्रीय सचिव, विज्ञान भारती ने की। मुख्य वक्ता प्रो. राम कुमार, सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं पूर्व विभागाध्यक्ष , पर्यावरण विज्ञान विभाग, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया थे। संयोजन और संचालन डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र, सहायक प्रोफेसर, मीडिया अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी केविवि ने की।

प्रो. अरुण कुमार भगत ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति अरण्य संस्कृति रही है। इसलिए चार आश्रमों में गृहस्थ आश्रम के अतिरिक्त तीनों आश्रम वन में बिताने वाले रहे। अर्थात जीवन जीने के अधिकांश समय को प्रकृति के सबसे नजदीक रहकर उसे संचालित करने की व्यवस्था बनाई गई। वेद, पुराण, उपनिषद साहित्य में पर्यावरण को लेकर जो चिंतन और पद्धति है वह अन्यत्र किसी दूसरे के साहित्य में देखने को नहीं मिलती। छिति, जल, पावक, गगन, समीरा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और साहित्य में इन्हें देवता माना गया। पृथ्वी, गंगा, गाय को माता का सम्बोधन दिया गया और यह सभी पूज्य है। वैदिक काल से ही वृक्ष विशेषकर तुलसी, पीपल, बरगद आदि को पूजने की परंपरा पर्यावरण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को अनादि काल से दर्शाते हैं।

अध्यक्षीय उद्बोधन में विवेकानंद पाई, राष्ट्रीय सचिव, विज्ञान भारती ने कहा कि पर्यावरण को लेकर विश्व में खूब चर्चा हो रही हैं। जलवायु परिवर्तन उन चर्चाओं के केंद्र में है। हिन्दू संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण को लेकर धर्म के साथ जोड़कर देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। पंच महाभूत की चर्चा करते हुए श्री पाई ने कहा कि सृष्टि का आधार जल, आकाश, अग्नि, पृथ्वी और वायु हैं। यज्ञ की महत्ता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने भी यज्ञ करने पर जोर देते थे। हमारे शांति मंत्र पर्यावरण को समर्पित है। विश्व को यदि आगे ले जाना है तो प्राचीन भारतीय संस्कृति और साहित्य के पर्यावरणीय दृष्टिकोण को स्वीकार करना होगा। शिक्षा व्यवस्था में पर्यावरण संरक्षण के भारतीय चिंतन को शामिल करने की आवश्यकता है।

मुख्य वक्ता प्रो. राम कुमार ने कहा कि विश्व पर्यावरण दिवस तो 1973 से मनाया जा रहा है लेकिन भारतीय संस्कृति और साहित्य में पर्यावरण शुद्धि और उसे बेहतर बनाने का चिंतन प्राचीन काल से ही रहा। जब हम सांस्कृतिक भारत की बात करते है तो नदियां और पर्वत देश को पूर्व से पश्चिम और दक्षिण से उत्तर को जोड़ती है। हमारे ऋषि मुनियों ने पर्यावरण को मनुष्य का अविभाज्य अंग माना। मनुष्य जिस तरह से भविष्य की चिंता किए बिना प्रकृति का दोहन कर रहा है, उससे वह पृथ्वी का सबसे खतरनाक प्राणियों में शामिल हो गया है। हमारे ऋषि मुनियों और पूर्वजों का पर्यावरण दर्शन अद्भुत था। आज जरूरत है उस दर्शन को आत्मसात करने का।

परिचर्चा संस्कार भारती बिहार के संगठन मंत्री वेद प्रकाश के सानिध्य में आयोजित हुई। कार्यक्रम का तकनीकी संयोजन संस्कार भारती उत्तर बिहार प्रान्त के महामंत्री सुरभित दत्त ने की। परिचर्चा के संयोजक डॉ. परमात्मा कुमार मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम से संस्कार भारती बिहार के पदाधिकारीगण, सदस्य एवं शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी व विद्वानगण उपस्थित थे।

0Shares
A valid URL was not provided.

छपरा टुडे डॉट कॉम की खबरों को Facebook पर पढ़ने कर लिए @ChhapraToday पर Like करे. हमें ट्विटर पर @ChhapraToday पर Follow करें. Video न्यूज़ के लिए हमारे YouTube चैनल को @ChhapraToday पर Subscribe करें