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लेखकों को फासीवाद के खिलाफ खुलकर बोलना होगा: ब्रज कुमार पांडे

Chhapra:  बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के सोलहवें राज्य सम्मेलन का दूसरा सत्र नामवर सिंह नगर के महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन सभागार में आयोजित किया गया.

दूसरे दिन के पहले सत्र को संबोधित करते हुए बिहार प्रदेश के अध्यक्ष ब्रजकुमार पांडे ने हटिंगटन को उद्घृत करते हुए कहा “हटिंगटन ने क्लैश ऑफ़ सिविलाइजेशन लिखकर बड़े व्यवस्थित ढंग से क्लास के सवाल को पीछे धकेलने का प्रयास किया. पूंजीवाद आज पूरी दुनिया में जंगल व प्राकृतिक संसाधनों को नए ढंग से कब्ज़ा करने का प्रयास किया जा रहा है. 1930 के दशक में जो आर्थिक मंदी आया उसके परिणाम स्वरूप फासीवाद का संकट आया जिसके खिलाफ लेखकों ने दुनिया भर में इसका प्रतिरोध किया. आज आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के माध्यम से आने वाले खतरों को समझना होगा.”

बिहार प्रदेश के महासचिव रवींद्र नाथ राय ने रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा “आज बर्बरता को ही सभ्यता के रूप में सामने रखा जा रहा है. गाय को इस तरह भारत माता बना दिया गया है कि उसे माता न मानने वाले देशद्रोही माना जाता है. गाय, कश्मीर, लवजिहाद तक हिंसा का दुष्चक्र बना हुआ है. हिन्दू समाज इतना जड़, ठस व कूपमण्डूक कभी नहीं था.” अपने वक्तव्य के पश्चात रवींद्रनाथ राय ने सांगठनिक रिपोर्ट रखा, जिसमें 2015 के लखीसराय राज्य सम्मेलन के बाद के चार वर्षों के दौरान हुई प्रदेश की गतिविधियों की चर्चा की गई. रिपोर्ट के बाद प्रतिनिधि सत्र आरंभ हुआ.

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मधेपुरा के मणिभूषण वर्मा, सीवान के अनिल कुमार श्रीवास्तव, गया के परमाणु कुमार, मधुबनी के श्रीराम प्रिय पांडे, अरविंद प्रसाद , रामविलास साहू, बेगूसराय के ललन लालित्य, अनिल पतंग, खगड़िया से राजेन्द्र राजेश, पूर्वी चंपारण से हरिश्चंद्र चौधरी, मुजफ्फरपुर आए रमेश ऋतम्भर, सीतामढ़ी के रामबाबू नीरव, लखीसराय के रामबहादुर सिंह, अशोक समदर्शी, पूर्णियां से नूतन आनन्द.

इस सत्र ने राष्ट्रवाद के नाम पर धार्मिक उन्माद, विकास के प्रश्नों, संकटों से घिरी दुनिया, विवेक पर हमला, नेहरू के संबंध में दुष्प्रचार, सूचना पर सरकार का नियंत्रण, नई इकाइयों के गठन, आर्थिक संसाधन का इंतज़ाम, कन्हैया पुरस्कार का पुनः प्रारंभ, पुरानी पत्रिकाओं का फिर से प्रकाशन, सोशल मीडिया का इस्तेमाल संबंधी विचार व सुझाव प्रकट किए गए.

सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान पूरे हिंदी क्षेत्र में हस्तक्षेप किया गया.सिर्फ राजधानी ही नहीं बल्कि जिला, अनुमंडल स्तर तक ले जाकर कार्यक्रम हमने कोशिश जी है. आयोजनधर्मिता ही महज नहीं हो, इसके साथ साथ रचनाधर्मिता को भी ध्यान देने की जरूरत थे. राजेन्द्र राजन ने आगे कहा कि हमें अतीत की उपलब्धियों ओर बातें करके ही वर्तमान की चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकता. सिर्फ क्रांतिकारी बातें करके राज्याश्रय पाने की इच्छा रखने वालों की कोई जरूरत नहीं है. हमें भाजपा या सांप्रदायिक ताकतों द्वारा आयोजित आयोजनों से दूरी बनाने होगी. हम राज्यसत्ता को हमे विचारधारा और वर्गीय आधार पर करना चाहिए. हमें दृष्टिसंपन्न होकर आगे बढ़ने की जरूरत होगा.

स्वागत समिति के उपाध्यक्ष लाल बाबू यादव ने छपरा के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि छपरा में जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ हुए जिन्होंने प्रेमचंद की पहली आलोचना लिखी. यहीं राहुल सांकृत्यायन रहा करते थे. जब छपरा में जयप्रकाश विश्विद्यालय बना तो उसके परिसर का नाम राहुल सांकृत्यायन के नाम पर रखा गया. यहां भोजपुरी साहित्य का आंदोलन भी सशक्त धारा रही है. प्रगतिशील आंदोलन की बहुत मजबूत धारा रही है. भले ही उसपर कोई सांगठनिक मुहर नहीं हो. छपरा में 1947 से आजतक कोई साम्प्रदायिक दंगा का इतिहास नहीं रहा है. लेकिन इधर हाल के दिनों में धार्मिक उन्माद बढाया जा रहा है.

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