गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का राष्ट्र के नाम संदेश

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का राष्ट्र के नाम संदेश

नई दिल्ली: 69वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र को संबोधित किया. राष्ट्र के नाम संदेश में सबसे पहले उन्‍होंने देश वासियों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी, साथ ही देश में योगदान देने वालों को नमन किया. राष्ट्रपति ने कहा कि देश के 69वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई! यह राष्ट्र के प्रति सम्मान की भावना के साथ, हमारी सम्प्रभुता का उत्सव मनाने का भी अवसर है. उन्होंने कहा ‘यह उन लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के महान प्रयासों और बलिदान को, आभार के साथ याद करने का दिन है जिन्होंने अपना खून-पसीना एक करके, हमें आज़ादी दिलाई, और हमारे गणतंत्र का निर्माण किया. आज का दिन हमारे लोकतान्त्रिक मूल्यों को नमन करने का भी दिन है.’

उन्होंने कहा कि देश के लोगों से ही लोकतंत्र बनता है. हमारे नागरिक, केवल गणतंत्र के निर्माता और संरक्षक ही नहीं हैं, बल्कि वे ही इसके आधार स्तम्भ हैं. हमारा हर नागरिक, हमारे लोकतन्त्र को शक्ति देता है. हर एक सैनिक, जो हमारे देश की रक्षा करता है. हर-एक किसान, जो हमारे देशवासियों का पेट भरता है. हर-एक पुलिस और अर्ध-सैनिक बल, जो हमारे देश को सुरक्षित रखता है. हर-एक मां, जो देशवासियों का पालन-पोषण करती है. हर-एक डॉक्टर, जो देशवासियों का उपचार करता है. हर-एक नर्स, जो देशवासियों की सेवा करती है; हर-एक स्वच्छता कर्मचारी, जो हमारे देश को स्वच्छ रखता है. हर-एक अध्यापक, जो हमारे देश को शिक्षित बनाता है; हर-एक वैज्ञानिक, जो हमारे देश के लिए इनोवेशन करता है. हर-एक इंजीनियर, जो हमारे देश को एक नया स्वरुप देता है.

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे वरिष्ठ नागरिक, जो गर्व के साथ यह देखते हैं कि वे अपने लोकतंत्र को कितना आगे ले आये हैं. हर-एक युवा, जिसमे हमारे देश की ऊर्जा, आशाएं, और भविष्य समाए हुए हैं और हर-एक प्यारा बच्चा, जो हमारे देश के लिए नए सपने देख रहा है. संविधान का निर्माण करने, उसे लागू करने और भारत के गणराज्य की स्थापना करने के साथ ही, हमने वास्तव में ‘सभी नागरिकों के बीच बराबरी’ का आदर्श स्थापित किया, चाहे हम किसी भी धर्म, क्षेत्र या समुदाय के क्यों न हो .

उन्होंने कहा कि समता या बराबरी के इस आदर्श ने, आज़ादी के साथ प्राप्त हुए स्वतंत्रता के आदर्श को पूर्णता प्रदान की. एक तीसरा आदर्श हमारे लोकतंत्र के निर्माण के सामूहिक प्रयासों को और हमारे सपनों के भारत को सार्थक बनाता है. यह है, बंधुता या भाईचारे का आदर्श. हमें आजादी एक कठिन संघर्ष के बाद मिली थी. इस संग्राम में, लाखों लोगों ने हिस्सा लिया. उन स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया. महात्मा गाँधी के नेतृत्व में, ये महान सेनानी, मात्र राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करके संतुष्ट हो सकते थे. लेकिन उन्होंने पल भर भी आराम नहीं किया। बल्कि दुगने उत्साह के साथ संविधान बनाने के महत्त्वपूर्ण कार्य में पूरी निष्ठा के साथ जुट गए. उनकी नजर में हमारा संविधान, हमारे नए राष्ट्र के लिए केवल एक बुनियादी कानून ही नहीं था, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक दस्तावेज था.

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान निर्माता बहुत दूरदर्शी थे. वे ‘कानून का शासन’ और ‘कानून द्वारा शासन’ के महत्त्व और गरिमा को भली-भांति समझते थे. वे हमारे राष्ट्रीय जीवन के एक अहम दौर के प्रतिनिधि थे. हम सौभाग्यशाली हैं कि उस दौर ने हमें गणतंत्र के रूप में अनमोल विरासत दी है. जिस शुरुआती दौर में, हमारे संविधान का स्वरुप तय किया गया, उस दौर से मिली हुई सीख हमारे लिए आज भी प्रासंगिक है. हम जो भी कार्य करें, जहां भी करें, और हमारे जो भी लक्ष्य हों. उस दौर की सीख, हर क्षेत्र में हमारे लिए उपयोगी है.

उन्होंने कहा कि राष्ट्र निर्माण करोड़ों छोटे-बड़े अभियानों को जोड़कर बना, एक सम्पूर्ण अभियान है. नागरिकों के चरित्र का निर्माण करना, परिवारों द्वारा अच्छे संस्कारों की नींव डालना, और समाज से अंध-विश्वास तथा असमानता को मिटाना, ये सभी राष्ट्र-निर्माण की दिशा में योगदान हैं. जहां बेटियों को, बेटों की ही तरह, शिक्षा, स्वास्थ्य और आगे बढ़ने की सुविधाएं दी जाती हैं, ऐसे समान अवसरों वाले परिवार और समाज ही एक खुशहाल राष्ट्र का निर्माण करते हैं. महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए सरकार कानून लागू कर सकती है और नीतियां भी बना सकती है, लेकिन ऐसे कानून और नीतियां तभी कारगर होंगे जब परिवार और समाज हमारी बेटियों की आवाज़ को सुनेंगे. हमें परिवर्तन की इस पुकार को सुनना ही होगा .

राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि आत्म-विश्वास से भरे हुए और आगे की सोच रखने वाले युवा ही एक आत्म-विश्वास-पूर्ण और प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करते हैं. हमारे 60 प्रतिशत से अधिक देशवासी 35 वर्ष से कम उम्र के हैं. इन पर ही हमारी उम्मीदों का दारोमदार है. हमने साक्षरता को काफी बढ़ाया है; अब हमें शिक्षा के दायरे और बढ़ाने होंगे. शिक्षा-प्रणाली को ऊंचा उठाना, और उसके दायरे को बढ़ाना तथा 21वीं सदी की डिजिटल अर्थव्यवस्था, जीनोमिक्स, रोबोटिक्स और ऑटोमेशन की चुनौतियों के लिए समर्थ बनाना हमारा उद्देश्य होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि इनोवेटिव बच्चे ही एक इनोवेटिव राष्ट्र का निर्माण करते हैं. इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें एक जुनून के साथ, जुट जाना चाहिए. हमारी शिक्षा-प्रणाली में, रटकर याद करने और सुनाने के बजाय, बच्चों को सोचने और तरह-तरह के प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. हमने खाद्यान्न उत्पादन में काफी बढ़ोतरी की है, लेकिन अभी भी कुपोषण को दूर करने और प्रत्येक बच्चे की थाली में जरुरी पोषक तत्व उपलब्ध कराने की चुनौती बनी हुई है. यह हमारे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए, और देश के भविष्य के लिए, बहुत ही महत्वपूर्ण है.

राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि मुहल्ले-गांव और शहर के स्तर पर सजग रहने वाले नागरिकों से ही एक सजग राष्ट्र का निर्माण होता है. हम अपने पड़ोसी के निजी मामलों और अधिकारों का सम्मान करते हैं। त्योहार मनाते हुए, विरोध प्रदर्शन करते हुए या किसी और अवसर पर, हम अपने पड़ोसी की सुविधा का ध्यान रखें. किसी दूसरे नागरिक की गरिमा और निजी भावना का उपहास किए बिना, किसी के नजरिये से या इतिहास की किसी घटना के बारे में भी हम असहमत हो सकते हैं. ऐसे उदारतापूर्ण व्यवहार को ही भाईचारा कहते हैं. नि:स्वार्थ भावना वाले नागरिकों और समाज से ही, एक नि:स्वार्थ भावना वाले राष्ट्र का निर्माण होता है. स्वयंसेवी समूह बेसहारा लोगों और बच्चों, और यहां तक कि बेघर पशुओं की भी, देखभाल करते हैं. समुद्री तटों जैसे सार्वजनिक स्थानों और नदियों को साफ रखते हैं.

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