(अमन कुमार)
एक वक़्त था जब हमें कहीं पत्र भेजना होता था तो उसे हम किसी ई-मेल या कूरियर से नहीं बल्कि उसे घर के आस-पास बने पोस्ट बॉक्स में डाला करते थे. हमें जब कही पत्र भेजने होते, रक्षाबंधन से पहले कहीं दूर राखी भेजनी होती थी तो उसे लिफाफे में बंद करके इस लाल रंग वाले डब्बे में डालने का मज़ा कुछ और ही था.
पहले के समय चौक चौराहों पर ऐसे पोस्ट बॉक्स लगे होते थे. अगर किसी को कहीं कोई चिट्ठी भेजनी होती थी तो बस चिट्ठी वाले लिफाफे को इसी लाल डब्बे में डालना होता था, एक निश्चित समय के बाद डाकिया आता और उस चिट्ठी को निकालकर उचित पते पर पहुंचा देता था.
कुछ साल पहले तक ये पोस्ट बॉक्स ही सूचना के आदान-प्रदान का एक सुगम माध्यम हुआ करता था. बदलते वक्त के साथ लोगों की ज़रूरतें भी बदल गयी. नई टेक्नोलॉजी और संचार के आधुनिक माध्यमों के आने से धीरे-धीरे लोगों ने इसका प्रयोग कम करना शुरू कर दिया. फलस्वरुप कल तक चमचमाने वाले ये लाल डब्बे अब कही कही ही नज़र आते है.
आज की तस्वीरें कुछ और ही हकीकत बयाँ करती हैं. आज आपने आस पास लगे पोस्ट बॉक्स पत्रों के इंतज़ार में खाली पड़े रहते हैं. आज संचार के लिए फोन, एसएमएस, व्हाट्स अप और सोशल और वीडियो कॉल को लोग अपना रहे है. पत्रों को भेजने के लिए भी आधुनिक व्यवस्था में ई-मेल से सेकंडों में भेज देते हैं.
कल तक जो पोस्ट बॉक्स लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण हुआ करता था. आज के डिजिटल होते युग ने उसकी महत्ता को ही खत्म कर दिया है.
अब ज्यादा दिन नही जब ये पोस्ट बॉक्स बस मात्र एक इतिहास बनकर रह जायेंगे.