{कबीर अहमद} ‘माँ’ जिसने मुझे जन्म दिया. ‘माँ’ जिसने मुझे बोलना सिखाया. ‘माँ’ जिसने मुझे चलना सिखाया. ‘माँ’ ने हमें बचपन से ही बड़ों को आदर करना सिखाया है.
एक माँ ही है जिसका दिया हुआ उपकार कोई उसे वापस ना कर पाया है और ना कर पायेगा. ‘माँ’ शब्द भले ही छोटा है लेकिन बिना इस शब्द के संसार सम्पूर्ण नही हो सकता. सम्पूर्ण संसार जिसमें सिमट जाता है, वो है माँ का आँचल. यह सच है. दुनिया में ये एकमात्र ऐसा रिश्ता है जिसमें स्वार्थ नहीं, धोखे की कोई संभावना नहीं बस प्यार और दुलार होता है. हर बच्चा माँ की गोद में ही ख़ुद को महफूज़ समझता है.
हर दिल की एक ही सदा होती है ‘इस दुनिया में सब मैले हैं, किस दुनिया से आई माँ’. इंसान सबसे ज्यादा हालातों से सीखता है पर माँ हमें उन हालातों से निपटना सिखाती है. हर दुःख को अपना दुःख समझती है हर दर्द को अपना समझती है. तभी तो हर हालातों में पर्वत जैसी खड़ी रहती है.
हर कदम पर माँ का आशीर्वाद जिनके साथ है वो बहुत खुशनसीब हैं.