शिक्षकों के राजनीति की भेंट चढ़ रहा सोनपुर शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान

शिक्षकों के राजनीति की भेंट चढ़ रहा सोनपुर शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान

छपरा: शिक्षक का मूल कर्तव्य होता है ‘शिक्षा का दान’ लेकिन वर्तमान समय में शिक्षण संस्थान शिक्षा का मंदिर बनने की बजाय एक व्यवसायिक केंद्र बनता जा रहा है. जहाँ शिक्षा का दान देने के बदले शिक्षक सिर्फ उपस्थिति पंजी का व्यवसायिक केन्द्र बनाने पर बल दे रहे हैं. बात चाहे बच्चें की हो या फिर शिक्षकों के प्रशिक्षण संस्थान की. जहाँ इन दिनों अप्रशिक्षित शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं.

सरकार ने प्रशिक्षण अवधि में वेतन देने की अनुमति क्या दी कुछ शिक्षक इसे पैसा कमाने का जरिया बनाने के फ़िराक में हैं. प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्या ने विरोध किया तो उल्टे उन्हें आरोपों के जाल में उलझा दिया गया. इसके बावजूद कई शिक्षक शिक्षा का दान देकर जिला शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान की अस्मिता बचा रहे हैं.

इस पूरे प्रकरण की सच्चाई जानने के लिए सोनपुर के जिला शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्या से छपरा टुडे ने बातचीत की. जिसमे कई चौकाने वाले तथ्य सामने आये जिससें यह बात स्पष्ट हो गयी है.

डायट की प्राचार्या दीपा कुमारी के अनुसार उनके द्वारा विद्यालय में योगदान देने के दिन से ही इसके विकास को लेकर कार्य किया जा रहा है. प्रशिक्षु शिक्षकों के शिक्षण को लेकर नियमित रूप से कक्षा का आयोजन कराना तथा कक्षा में 85 प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया. लेकिन संस्थान के प्राध्यापक इससे खफ़ा होने लगें.

शिक्षण संस्थान में पढ़ाने की बजाय प्राध्यापक शिक्षकों से कक्षा के संचालन में बाधा उत्पन्न करने लगे. कई प्रशिक्षु शिक्षकों को अपने साथ मिलाकर बिना कक्षा में उपस्थित हुए शिक्षकों को अनुपस्थिति विवरणी देने और पैसा उगाही की योजना बनाई जाने लगी. जिसका कई प्राध्यापकों ने विरोध भी किया. लेकिन किसी की एक न चली.

प्राचार्य दीपा कुमारी ने बताया कि शिक्षण संस्थान में 10 प्राध्यापक हैं. लेकिन मात्र 05 प्राध्यापकों द्वारा ही कक्षा का संचालन किया जाता हैं. उन्होंने बताया कि एक शिक्षक पूर्व में शिक्षक नेता थे जो सिर्फ शिक्षण संस्थान में राजनीति करते है. वही एक शिक्षक समस्तीपुर में कार्यरत है लेकिन तालमेल से उन्होंने डायट में अपना प्रतिनियोजन करा रखा है. पटना से आना और जाना इतना ही तक सीमित है. शिक्षण संस्थान में वैसे तो कई महिला शिक्षक है लेकिन दो महिलाएं शिक्षकों को पढ़ाने की बजाए अन्य शिक्षकों के साथ राजनीति करती है. शिक्षण संस्थान में प्रतिदिन शिक्षकों की संख्या बेहतर है लेकिन उन्हें पढ़ाने की बजाय प्राध्यापक उन्हें घर जाने की सलाह देते है इतना ही नहीं उन्हें पैसो की बदौलत अनुपस्थिति विवरणी देने का प्रलोभन भी दिया जाता हैं.

विदित हो कि सरकारी विद्यालयों में कार्यरत अप्रशिक्षित शिक्षक राज्य के अलग अलग प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षण ले रहे हैं. पुरे दो वर्ष की प्रशिक्षण अवधि के दौरान उन्हें शिक्षण संस्थान से मिलने वाले अनुपस्थिति विवरणी के आधार पर वेतन भी दिया जाना हैं. लेकिन शिक्षण संस्थानों में अनुपस्थित रहने पर उन्हें अनुपस्थिति विवरणी नहीं मिलेगी जिससे उन्हें वेतन नहीं मिल पायेगा. इसी वजह से शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के कुछ शिक्षक प्रशिक्षु से तालमेल बैठाकर बिना कक्षा में शामिल हुए अनुपस्थिति विवरणी के बदले पैसा बना रहे हैं.

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